खगोलशास्त्र और फलज्योतिषविज्ञान में अद्भुत शोध करनेवाले आचार्य वराहमिहिर के जन्मस्थान के प्रति मध्यप्रदेश सरकार की घोर उपेक्षा !

 कौन थे आचार्य वराहमिहिर ?

बताया जाता है कि आचार्य वराहमिहिर का जन्म ५ वीं शताब्दी में हुआ था । जोधपुर के ज्योतिषाचार्य पं. रमेश भोजराज द्विवेदी की गणनानुसार वराहमिहिर का जन्म चैत्र शुक्ल दशमी को हुआ था । वराहमिहिर का घराना परंपरा से सूर्योपासक था । उनके पिता आदित्यदास ही उनके ज्ञानगुरु थे । प्राचीन काल में निर्मित भारतीय खगोलशास्त्र और फलज्योतिषशास्त्र, सूर्य को विश्‍व का केंद्र और इसमें होनेवाली प्रत्येक घटना का मूल कारण मानते हैं । स्वाभाविक ही सूर्योपासक वराहमिहिर का ध्यान इन दो शास्त्रों के अध्ययन की ओर आकृष्ट हुआ होगा । वराहमिहिर ने इस अध्ययन को अपना जीवनकार्य माना और इसे जीवन के अंत तक अविरत करते रहे ।

अध्ययन और ग्रंथसंपदा

खगोलशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, जलवायुशास्त्र, प्राणिशास्त्र, जलशास्त्र और अन्य शास्त्रों का परस्पर संबंध और उनका मानव जीवन पर पडनेवाले प्रभाव का अध्ययन व विवेचन आचार्य वराहमिहिर ने अपने ग्रंथों में किया है । उनका बृहद संहिता ग्रंथ उनके प्रदीर्घ, गहन अध्ययन की एक अनमोल धरोहर है । वराहमिहिर लिखित खगोलशास्त्र पर लिखा ग्रंथ, ‘पंचसिद्धांतिका’ तथा बृहतजातक, लघुजातक ग्रंथों का भी आज अध्ययन किया जाता है । आचार्य वराहमिहिर ने इस क्षेत्र में जो शोध किया है, वह जानकर आजकल के बडे-बडे वैज्ञानिक भी चकित होते हैं । उनके वैज्ञानिक विचारों का भारत ने उपयोग किया होता, तो आज विज्ञान के क्षेत्र में उसने ऊंची उडान भरी होती ।

आचार्य वराहमिहिर की विद्वत्ता और
आधुनिक विज्ञान को भी चकित करनेवाला शोध

  • गैलिलियो ने बहुत पहले अंतरराष्ट्रीय और अंतरदेशीय विद्वत सभाआें में सप्रमाण सिद्ध किया था कि पृथ्वी गेंद के समान गोल है ।
  • आचार्य वराहमिहिर, राजा विक्रमादित्य के नौ नररत्नों में शिरोमणि थे । उन्होंने, राजा विक्रमादित्य के पुत्र की मृत्यु की अचूक भविष्यवाणी की थी । राजा ने पुत्र की प्राणरक्षा के सारे प्रयत्न किए थे । पर, वे उसे नहीं बचा पाए । उसकी मृत्यु आचार्य वराहमिहिर के बताए समय पर ही हुई ।
  • बृहद् संहिता ग्रंथ में भूकंप होने के कारण, दिन और समय का विस्तृत उल्लेख हुआ है ! इसमें भूकंप की पूर्वसूचना देनेवाले बादलों का अचूक वर्णन किया गया है ।
  • वराहमिहिर की बृहद् संहिता में ‘दकार्गल’ नाम का अध्याय है । उसमें भूमि पर दिखाई देनेवाले कुछ लक्षणों से भूगर्भ में स्थित जलभंडार का पता लगाने की अत्यंत, उपयोगी, उद्बोधक और शास्त्रीय जानकारी है ।
  • अल-बिरौनी नाम का अरबी वैज्ञानिक और प्रवासी कहता, ‘‘वराहमिहिर के प्रत्येक कथन का आधार शास्त्र और सत्य है ।’’
  • वराहमिहिर के सिद्धों की उपयोगिता १९८१ में सिद्ध हुई, जब आंध्रप्रदेश के चित्तूर जनपद मे अकाल पडा था । उस समय तिरुपति के श्री वेंकटेश्‍वर विश्‍वविद्यालय ने इसरो (भारतीय अंतरिक्ष शोध संस्था) और विद्यापीठ अनुदान आयोग की सहायता से एक जलखोजी उपक्रम हाथ में लिया गया था । उसके अंतर्गत १५० नलकूप खोदे गए थे और उन सबमें पानी लगा था । इस काम के लिए उन्होंने वराहमिहिर लिखित भू-लक्षणों का उपयोग कर, जल-भंडारों की खोज की थी ।

आचार्य वराहमिहिर के स्मारक की दुर्दशा !

पं. आनंद शंकर व्यास और उनके परिवार ने १ सितंबर २०१० को गांव कायथा के एक निजी स्थान में आचार्य वराहमिहिर का स्मारक बनाया था । आजकल इस स्मारक की ओर किसी का ध्यान नहीं है । स्मारक पर छत तक नहीं है; वह केवल पतरे से ढंका है ।

प्राचीन गांव ‘कायथा’ की उपेक्षा !

कायथा गांव के विषय में ‘मिहिर विचार क्रांति मंच’ के श्री. महेश पाटीदार कहते हैं, ‘इस गांव में अनेक स्थानों पर खुदाई की गई, जिसमें अनेक प्राचीन मूर्तियां, ताम्रपत्र मिले हैं । इसलिए यह गांव ऐतिहासिक और पुरातत्व विभाग की दृष्टि से भी, बहुत महत्त्वपूर्ण है । इतिहासकार श्री. विष्णुधर वाकणकर के शोधों के कारण वर्ष १९६४ में पुरातत्व विभाग का ध्यान कायथा गांव की ओर गया । इसके पश्‍चात उसने, वर्ष १९६५-१९६७ के मध्य इस गांव में खुदाई की । चित्रगुप्त की तपोभूमि कायथा गांव है । फिर भी, अभी तक इस गांव की उपेक्षा ही हो रही है । न्यूनतम, पर्यटन की दृष्टि से तो भी सरकार को इस गांव का विकास करना चाहिए ।

खगोलशास्त्र और फलज्योतिषविज्ञान में अद्भुत शोध करनेवाले
आचार्य वराहमिहिर के जन्मस्थान के प्रति मध्यप्रदेश सरकार की घोर उपेक्षा !

कायथा (उज्जैन, मध्यप्रदेश) : राजा विक्रमादित्य की राजधानी प्राचीन उज्जयिनी नगर से केवल २५ कि.मी. दूर कायथा गांव (प्राचीन नाम ‘कपित्थक’) है । इस बात का उल्लेख ‘बृहज्जातक’ ग्रंथ में मिलता है । यह गांव, खगोलशास्त्र और फलज्योतिष विज्ञान में अद्भुत शोध करनेवाले आचार्य वराहमिहिर का जन्मस्थान है । परंतु मध्यप्रदेश सरकार ने अब तक इस ओर ध्यान नहीं दिया है । दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि आचार्य वराहमिहिर और उनके कार्य से पूरे विश्‍व के लोग परिचित हों, इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार अब तक उनके जन्मगांव में उनका स्मारक तक नहीं बना सकी । यहां वर्ष २०१० में पंडित आनंद शंकर व्यास और उनके परिवार ने वराहमिहिर का जो स्मारक बनाया था, वह आज पूर्णतः उपेक्षित है ।

स्त्रोत : सनातन प्रभात हिन्दी

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