अग्निशमन की पद्धतियां

आपातकाल में संजीवनी : सनातन की ग्रंथमाला !

आज अग्नि दैनिक जीवन-व्यापार का अत्यावश्यक घटक है, तब भी उसके संदर्भ में नियंत्रित तथा अनियंत्रित स्वरूप की जो लक्ष्मणरेखा होती है, वह अधिक महत्त्वपूर्ण है । मनुष्य द्वारा सामान्यत: प्रयुक्त आग के सर्व प्रकार नियंत्रित होते हैं; किंतु किसी विशेष प्रसंग में आग नियंत्रण की सीमारेखा लांघ सकती है । ऐसी स्थिति में उसपर कौनसे उपाय आवश्यक हैं, आग के संपर्क में अधिक रहनेवालों को इसका ज्ञान होना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ।

अग्निशमन के संदर्भ में प्रशिक्षण बडे-बडे कारखानों, यात्री नौकाओं (जहाज), विमान आदि में दिया जाता है; परंतु दुःख की बात यह है कि सामान्य मनुष्य, तथा दिन के ५-६ घंटे आग की सहायता से भोजन बनानेवाली गृहिणी आग का शास्त्र तथा अग्निशमन के उपायों के संदर्भ में पूर्णत: अनभिज्ञ होती है । इस अज्ञान से कई दुर्घटनाएं घटती हैं ।

आग का शास्त्र, अग्निशमन के विविध माध्यम तथा उनका उपयोग करने की पद्धतियां, अनुचित माध्यमों का उपयोग करने से होनेवाले दुष्परिणाम आदि के संदर्भ में शास्त्रीय दृष्टिकोण से एवं सरल भाषा में ज्ञान देना, यही इस ग्रंथ को संंकलित करने का प्रमुख उद्देश्य है । अग्निप्रलय की आपदा के कारण राष्ट्र की जैवीय तथा वित्तीय हानि बडी मात्रा में होती है । इस हानि को रोकने की दृष्टि से प्रयत्नरत होने का अर्थ है राष्ट्रहित एवं राष्ट्ररक्षा के कार्य में सहयोगी होना ।

अग्निशमन प्रशिक्षण लेना, यह केवल आपातकाल की दृष्टि से ही नहीं, अपितु सदा के लिए ही उपयुक्त है । इस लेख के माध्यम से पाठकों को अग्निशमन प्रशिक्षण का परिचय होगा । अग्निशमन प्रशिक्षण के विषय में विस्तृत विवेचन ग्रंथ में किया है । यह ग्रंथ पाठक अवश्य संग्रहित करें ।

संतों ने भविष्यवाणी की है कि आगामी तीसरे विश्‍वयुद्ध में परमाणु आक्रमणों से करोडों लोगों की मृत्यु होगी । भविष्य, भीषण प्राकृतिक विपदाओं से भरा होगा । ऐसे आपातकाल में यातायात के साधन नहीं होंगे, जिससे रोगियों को चिकित्सालय तक पहुंचाना, चिकित्सकों की उपलब्धता तथा दुकानों में औषधियां मिलना दुर्लभ होगा । उस आपातकाल का सामना करने हेतु सनातन संस्था ने, आपातकाल के लिए संजीवनी ग्रंथमाला की निर्मिति की है, जो नाम के अनुरूप ही सिद्ध होगी । प्रस्तुत है इसी ग्रंथमाला के अग्निशमन प्रशिक्षण नामक ग्रंथ का परिचय …!

 १. आग के घटक

आग की निर्मिति के लिए ईंधन, प्राणवायु एवं उष्णता, इन तीन प्रमुख घटकों का एकजुट होना आवश्यक है । ये तीनों घटक उचित मात्रा में एकजुट होने पर ही आग की निर्मिति होती है ।

 

२. आग लगने के सामान्य कारण

१. प्राकृतिक : आंधी, भूकंप, ज्वालामुखी आदि ।

२. अप्राकृतिक : इस प्रकार की आग के लिए मनुष्य प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्षरूप से उत्तरदायी होता है । अप्राकृतिक आग के अन्य कारण भी होते हैं, उदा. अज्ञान, लापरवाही (उदा. इस्त्री अधिक मात्रा में तपना, जलती सिगार / बीडी बुझाए बिना फेंकना), दुर्घटनाएं, घातपात, युद्ध आदि ।

 

३. आग का वर्गीकरण

ईंधन के प्रकार के अनुसार आग के चार प्रकार होते हैं ।

अ. ए प्रकार की आग : जलनेवाले पदार्थ जब कागद, लकडी, कोयला, प्लास्टिक, रबड जैसे कार्बनयुक्त एवं घनरूप होते हैं, तब उस आग को ए प्रकार की आग कहते हैं ।

आ. बी प्रकार की आग : जलनेवाला पदार्थ जब द्रवरूप (लिक्विड फॉर्म) में होता है अथवा किसी भी घनपदार्थ (सॉलिड फॉर्म) का द्रवरूप जलता है, तब उस आग को बी प्रकार की आग कहते हैं, उदा. पेट्रोल, डीजल, चिकनाई, रसायन, रंग इत्यादि ।

इ. सी प्रकार की आग : जिस आग में ज्वलनशील वायुरूप अथवा द्रवरूप पदार्थ का वायुरूप जलता है, उस आग को सी प्रकार की आग कहते हैं, उदा. रसोई की गैस (एल.पी.जी.), वेल्डिंग की गैस इत्यादि ।

ई. डी प्रकार की आग : जब कोई भी धातु जलती है, तब उस आग को डी प्रकार की आग कहते हैं, उदा. सोडियम, पोटैशियम, मैग्नेशियम, टिटेनियम इत्यादि ।

 

४. आग देखने पर आप क्या करोगे ?

अ. आग-आग ऐसे ऊंचे स्वर में चिल्लाते हुए आस-पास के लोगों को सतर्क करें ।

आ. अग्निशमन दल, पुलिस, नगरपालिका इत्यादि को आग के विषय में सूचित करें ।

इ. अग्निशमन दल के पहुंचने तक आग पर नियंत्रण रखने का प्रयत्न करें । इसके लिए द्वार एवं खिडकियां बंद करें । बिजली का प्रवाह बंद करें । आसपास के ज्वलनशील पदार्थ सुरक्षित स्थान पर
पहुंचाएं । यदि संभव हो, तो आग के चारों ओर का परिसर पानी के फव्वारे मारकर भिगोएं ।

ई. अग्निशमन के उचित साधनों का उपयोग कर आग बुझाएं ।

 

५. अग्निशमन की पद्धतियां

अ. ईंधन की प्राप्ति न होने देना (स्टार्विंग) : आग को ईंधन की पूर्ति बंद करने से, आग तुरंत बुझ जाती है । इस पद्धति को स्टार्विंग कहते हैं, उदा. गैस का चूल्हा बुझाते समय हम गैस का बटन बंद करते हैं । ईंधन न मिलने से गैस का चूल्हा बुझ जाता है ।

आ. ठंडा करना (कूलिंग) : जलनेवाले पदार्थ का तापमान उस पदार्थ के ज्वलनबिंदु से न्यून करने से, अर्थात पदार्थ का तापमान घटाने से आग तुरंत बुझती है । अग्निशमन की इस पद्धति को शीतलीकरण (ठंडा करना) कहते हैं, उदा. जलती लकडी पर पानी डालना ।

इ. वायु बंद करना (स्मॉदरिंग) : आग को होनेवाली प्राणवायु की पूर्ति पूर्णत: बंद कर देने से अथवा हवा में प्राणवायु की मात्रा १६ प्रतिशत से अधिक घटने से आग तुरंत बुझती है । जलती मोमबत्ती पर कांच ढकने के प्रयोग से यह प्रमाणित होता है । इसे हवा तोडना (स्मॉदरिंग) कहते हैं ।

ई. शृंखला अभिक्रिया को तोडना : कुछ विशिष्ट रसायनों का उपयोग कर ज्वलन की श्रृंखला अभिक्रिया तोडकर आग को बुझाया जा सकता है, उदा. हॅलॉन वायु । ऐसे रसायनों का उपयोग करना अधिक महंगा होने से उनका उपयोग सीमित रूप में किया जाता है ।

 

६. अग्निशमन के माध्यम

सामान्यत: उपयोग में लाए जानेवाले अग्निशमन के माध्यम तथा इन माध्यमों की कार्यपद्धति निम्नानुसार है ।

अ. पानी : अल्‍प मूल्‍य में तथा सर्वत्र एवं सहजता से प्राप्‍त होनेवाला ‘पानी’ अग्‍निशमन का प्रभावी माध्‍यम है । जलती लकडी, कागद जैसे कार्बन युक्‍त पदार्थों पर अथवा धातु पर निरंतर पानी का फुहारा छोडने से पानी जलते पदार्थों से उष्‍णता अवशोषित (सोखता है) करता है । उष्‍णता अवशेाषित करने की गति, उष्‍णता निर्मिति की गति से अधिक होने पर आग बुझती है । साथ ही, जलते पदार्थ पर पानी गिरते ही कुछ मात्रा में पानी की भाप बनती है । इस भाप का मेघ जलनेवाले पदार्थ पर निर्माण होता है । यह मेघ प्राणवायु को हटाकर आग बुझाने में सहायता करता है ।

आ. सूखा रासायनिक पाउडर (ड्राय केमिकल पाउडर) : सोडियम बाइकार्बोनेट, पोटैशियम बाइकार्बोनेट इन रासायनिक चूर्णों को सूखा रासायनिक चूर्ण के नाम से पहचाना जाता है । वे श्‍वेत होते हैं । द्रव कार्बन डाइऑक्साईड वायु का उपयोग कर दबाव से वह पाउडर आग पर छिडकने से इस पाउडर के कणों का आग पर एक मेघ बन जाता है । इस मेघ के कारण आग का हवा के साथ संपर्क टूट जाता है एवं प्राणवायु के न मिलने से पदार्थ के जलने की श्रृंखलात्मक प्रतिक्रिया खंडित होकर आग बुझती है । इस माध्यम का उपयोग मुख्यत: बी तथा सी प्रकार की आग को बुझाने के लिए किया जाता है । विद्युत उपकरण जलते रहने पर भी सूखा चूर्ण लाभदायी होता है ।

इ. कार्बन डाइऑक्साईड : सृष्‍टि में विद्यमान अनेक न जलनेवाली, तथा ज्‍वलन की प्रक्रिया में सहायता न करनेवाली वायुओं में कार्बन डाइऑक्‍साइड वायु का समावेश होता है । अन्‍य न जलनेवाली वायुओं की अपेक्षा कार्बन डाइऑक्‍साइड की व्‍यावहारिक निर्मिति करना तथा उसे संग्रहित करना सुविधाजनक होने से अग्‍निशमन के लिए उसका अधिक से अधिक उपयोग किया जाता है । अत्‍यंत उच्‍च दबाव में यह वायु द्रवरूप में विशिष्‍ट पद्धति से बनाए गए सिलेंडर में संग्रहित किया जाता है । यह वायु हवा की अपेक्षा पांच गुना भारी होने से आग पर फुहारने से जलनेवाले पदार्थ पर उसकी परत बनती है । इस प्रकार आग का हवा के साथ अर्थात प्राणवायु के साथ संपर्क टूटने से आग बुझ जाती है । कार्बन डाइऑक्‍साइड का उपयोग मुख्‍यत: विद्युत उपकरणों में लगी आग बुझाने के लिए किया जाता है । आग के स्‍थान पर यदि हवा बह रही हो, तथा आग खुले में लगी हो, तो कार्बन डाइऑक्‍साइड हवा के साथ बह जाता है । इसलिए ऐसे स्‍थानों पर इसका उपयोग करना प्रभावी नहीं होता ।

ई. विशिष्ट रसायन : कुछ रसायन ज्वलन की श्रृंखलात्मक प्रक्रिया तोडकर आग बुझाने में सहायता करते हैं । इस प्रकार के रसायनों का अग्निशमन के लिए सीमित मात्रा में उपयोग किया जाता है ।

उ. रेत : आग छोटी हो तथा अन्य कोई माध्यम उपलब्ध न हो, तो ए, बी एवं डी प्रकार की आग बुझाने के लिए रेत का उपयोग प्रभावी रूप से किया जा सकता है । रेत न मिलने पर भुरभुरी मिट्टी का भी उपयोग किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त भाप, एस्बेस्टस का कपडा, झाग (फेन) आदि का भी प्रयोग कर सकते हैं । इसकी जानकारी के साथ ही आग बुझाने के विविध प्रकार के एक्सटिंग्विशर्स का उपयोग करने की विस्तृत जानकारी भी इस ग्रंथ में दी है ।

ऊ. भाप : जब भाप अधिक मात्रा में उपलब्‍ध होती है, तब उसका उपयोग अग्‍निशमन के माध्‍यम के रूप में किया जा सकता है । भाप वायु की पूर्ति अथवा प्राणवायु से संपर्क तोडकर आग को बुझाती है, उदा. बॉयलर के वायु कक्ष में तेल के टपकने से आग लगी हो, तो वह बॉयलर की भाप से बुझाई जा सकती है ।

ए. झाग (फेन) : वायु से भरे पानी के बुलबुले अर्थात फेन । केवल पानी से बने बुलबुले सहजता से फट जाते हैं । इसलिए पानी में साबुन समान रसायन मिलाकर फेन बनाया जाता है । द्रवरूप पदार्थों में लगी आग बुझाने के लिए यह अत्‍यंत उपयुक्‍त होता है । फेन अत्‍यंत हलका होने से किसी भी द्रवपदार्थ पर वह तैरता है । साथ ही उसकी प्रसरण-क्षमता के कारण वह द्रवपदार्थ के पृष्‍ठभाग पर छा जाता है । इस प्रकार से वातावरण एवं जलनेवाले पदार्थ के बीच फेन की परत (स्‍तर) बनने से, ज्‍वलनशील पदार्थ को होनेवाली वायु की पूर्ति बंद हो जाती है और आग बुझ जाती है । फेन का उपयोग ईंधन की टंकियां, कढाई जैसे चारों ओर से बंद स्‍थानों पर लगी आग के लिए प्रभावकारी होती है ।

ऐ. एस्‍बेस्‍टस का कपडा : एस्‍बेस्‍टस का कपडा जलता नहीं, तथा वह उष्‍णता का वहन भी नहीं करता । अत: छोटी आग बुझाने के लिए इस कपडे का उपयोग किया जा सकता है । बडे-बडे उपाहारगृह, भोजनालय आदि के रसोईघर में यह कपडा रखना अनिवार्य है । आग लगने पर यह कपडा जलनेवाली वस्‍तु पर डाला जाता है । उस वस्‍तु के संपूर्णत: ढक जाने पर उस वस्‍तु का वायु के साथ संपर्क टूट जाता है और आग बुझ जाती है ।

 

७. प्राथमिक उपचार

अ. उत्तेजित न हों और न ही घबराएं ।

आ. आवश्‍यकता अनुसार अविलंब उपचार आरंभ करें ।

इ. रोगी को संभवत: खुली हवा मिले, यह देखें । वह यदि बंद स्‍थान पर हो, तो द्वार-खिडकियां खोलें ।

ई. गंभीर स्‍वरूप के घावों से पीडित रोगी को यदि खुले स्‍थान पर ले जाना हो, तो ध्‍यानपूर्वक ले जाएं ।

उ. रोगी की ध्‍यानपूर्वक जांच करें ।

ऊ. डॉक्‍टर की सहायता लें ।

८. आग के संदर्भ में सामान्‍य सूचनाएं

आग के संभाव्‍य संकटों से जागृत एवं सावधान रहना, यह अग्‍निशमन का ज्ञान आत्‍मसात करने का उद्देश्‍य है, निम्‍न छोटे-बडे सूत्र आचरण में लाने पर कई दुर्घटनाएं टाली जा सकती हैं ।

१. घर एवं कार्यालय स्‍वच्‍छ रखें । रद्दी, कागद इत्‍यादि भली-भांति बांधकर रखें । कपडे समेटकर अलमारी अथवा रैक में रखें ।

२. बिजली के खटके के (स्‍विच के) आसपास ज्‍वलनशील पदार्थ न रखें ।

३. पटाखे अथवा अन्‍य विस्‍फोटक वस्‍तुओं का संग्रह घर में न करें ।

४. जलती हुई मोमबत्ती कभी भी लकडी की वस्‍तु पर न रखें ।

५. सोने से पहले मच्‍छर विकर्षक (मॉस्‍किटो रिपेलेंट) अगरबत्ती जलाते समय उसे बिस्‍तर से दूर तथा सुरक्षित स्‍थान पर लगाएं ।

६. घर से बाहर जाते समय तेल का दीप जल रहा हो, तो बुझा दें ।

७. घर के बाहर कचरा जलाते समय आग फैले नहीं, इसका ध्‍यान रखें ।

८. दुर्गंधनाशक स्‍प्रे या उस प्रकार के अन्‍य रिक्‍त डिब्‍बे भूल से भी आग में न डालें ।

 

आगामी काल में भीषण आपदा से बचने
हेतु साधना करना तथा भगवान का भक्त बनना अपरिहार्य !

भावी आपातकाल का धैर्यपूर्वक सामना किया जा सके इस हेतु सनातन संस्था ने, आगामी युद्धकाल में संजीवनी सिद्ध होनेवाली ग्रंथमाला प्रकाशित की है । सभी यह ग्रंथमाला अवश्य पढें तथा उस में वर्णित विविध प्रकार की उपचार पद्धतियां सीख लें । तथापि हम सूचीदाब, प्रथमोपचार, मुद्रा आदि कितनी भी उपचार पद्धतियां सीख लें, तब भी इन सबका उपयोग हम तभी कर पाएंगे, जब त्सुनामी, भूकंप जैसी कुछ क्षणों में सहस्रों नागरिकों का संहार करनेवाली महाभयंकर आपदाओं में जीवित बचेंगे ! ऐसी आपदाओं में हमें कौन बचा सकता है ? तो केवल भगवान !

भगवान हमारी रक्षा करें, ऐसा लगता हो, तो हमें साधना तथा भक्ति करनी चाहिए । भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अपना भक्तों को वचन भी दिया है, न मे भक्तः प्रणश्यति । (अर्थ : मेरे भक्तों का विनाश कभी नहीं होगा) । इसका दूसरा अर्थ यह है कि किसी भी संकट से तरने हेतु साधना करना अनिवार्य है ।

साधना के विषय में जानने हेतु पढिए : सनातन संस्था की ईश्‍वरप्राप्ति के लिए साधना सिखानेवाली ग्रंथमाला !

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ `अग्निशमन प्रशिक्षण`

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