भगवान श्रीकृष्णद्वारा पितासमान, दिनचर्यासे संंबंधित आचार सिखाना

भगवान श्रीकृष्णकी सीख दर्शानेवाले चित्र


१ . भगवान श्रीकृष्णद्वारा ‘कराग्रे वसते लक्ष्मी…’ इस श्लोक
के माध्यम से एक पितासमान दिनचर्या से संंबंधित आचार सिखाना 

‘२७.१०.२०१२ को मैं ‘दिनचर्यासे संबंधित आचार एवं उनका शास्त्र’ इस ग्रंथका मराठीसे तमिलमें भाषांतर करनेकी सेवा कर रही थी । उस समय ‘कराग्रे वसत लक्ष्मी …’ इस श्लोकका भावार्थ समझते समय मेरी भावजागृति हुई और मैंने यह चित्र बनाया । ऐसा लगा कि मैं भाषांतरकी सेवा कर रही थी, इसलिए प.पू. डॉक्टरजीने मुझे यह चित्ररूपी उपहार दिया है ।

१ अ. चित्रका भावार्थ

१. भगवान श्रीकृष्णके आशीर्वादसे अंतर्मनमें चित्र का भावार्थ अंकित होना :

श्रीकृष्ण एक आदर्श पिता के समान ‘कराग्रे वसते लक्ष्मी…’ इस श्लोकसे लेकर मुझे दिनचर्याका एक-एक आचार सिखा रहे है और उनकी कृपासे इस श्लोकके साथ उसका भावार्थ भी मेरे अंतर्मनपर अंकित हो गया है ।

२. भक्तोंके लिए सूक्ष्मातिसूक्ष्म निर्गुणस्वरूपसे ईश्वरका मंत्रमुग्ध करनेवाले और सहजतासे पहचाने जानेवाले सगुण रूपमें अवतरित होना

ईश्वर सूक्ष्मातिसूक्ष्म हैं । अतः अज्ञानी जीवोंके लिए उन्हें कहीं भी पाना असंभवप्राय है । ईश्वरको ढूंढनेके
बहुत प्रयास करनेपर भी हिरण्यकश्यपु असफल रहा; जबकि भक्त प्रह्लादको तो वे चराचरमें दिख रहे थे । आज कलियुगके आधुनिक हिरण्यकश्यपु पूछते हैं, ‘रामसेतु बनानेवाले प्रभु रामचंद्र किस अभियाांqत्रकी (इंजीनियरिंग) महाविद्यालयसे उत्तीर्ण हुए ?’; परंतु व्याकुल भक्तोंके लिए वे उनके हाथोंमें ही बद्ध हैं । ‘इस सृष्टिके निर्माता हमारे हाथमें बद्ध हैं, और जब चाहे तब वे हमें दर्शन देते हैं ।’, इस अद्भुत कल्पनासे ही उनकी अनंत कोटि कृपाका भान होता है । अपने भक्तोंके लिए वे सूक्ष्मातिसूक्ष्म निर्गुणस्वरूपसे, मंत्रमुग्ध करनेवाले और सहजतासे पहचानमें आनेवाले सगुण रूपमें अवतरित होते हैं ।

३. हाथोंकी अंजुलीमें दर्शन करनेपर भगवानका धर्मकार्य करने हेतु शक्ति प्रदान करना

प्रतिदिन सवेरे हमारे हाथोंकी अंजुलीमें दर्शन देकर वे हमारा समय बचाते हैं और समर्पितभावसे धर्मकार्य करनेके लिए शाqक्त प्रदान कर प्रोत्साहित भी करते हैं ।

४. शरणागतिका महत्त्व

अ. कर्तापन भगवानके चरणोंमें अर्पित करनेपर उनके द्वारा कार्यक्षमता कल्पनासे भी परे बढाकर सर्व कार्य करवा लेना

किसी शास्त्रके सैद्धांतिक भागका महत्त्व केवल २ प्रतिशत होता है, तो प्रायोगिक भागका महत्त्व ९८ प्रतिशत होता है ।
इसी प्रकार इच्छाशक्ति और ज्ञानशक्तिका रूपांतरण क्रियाशक्तिमें होनेपर ही उनमें पूर्णत्व आता है; क्योंकि क्रियाशक्ति कृत्य दर्शाती है । हमारे सर्व कृत्य और उपक्रमोंमें हाथोंका बडा योगदान होता है । हम जब हमारा कर्तापन शरणागतभावसे भगवानके चरणोंमें अर्पित करते हैं, तब वे हमारी कार्यक्षमता कल्पनातीत मात्रामें बढाते हैं और हमसे कार्य करवा लेते हैं । 

आ. शरणागतिकी इस प्रक्रियामें जब हम अपने हाथ भगवानके चरणोंमें समर्पित करते हैं (शरणमें जाते हैं), तब हमारा अहं घटता है ।

इ. शरणागतभावसे किया प्रत्येक कर्म, अकर्म कर्म हो जाता है ।

५. हाथोंकी अंजुली और कमल

पूरे भावसे हाथोंकी अंजुली बनानेपर उसे कमल जैसा आकार प्राप्त होता है तथा हमारी उंगलियां कमलकी पंखुडियोंके समान हो जाती हैं और यह कमल भगवानके चरणोंमें अर्पित किया जाता है ।’

– श्रीमती उमा रविचंद्रन्, चेन्नई

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘बालभाव’में रेखांकित चित्र (भाग २)

Leave a Comment