सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में सनातन द्वारा विविध क्षेत्रों में किया आध्यात्मिक शोध

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सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

वर्ष १९९० से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में सनातन की ओर से आध्यात्मिक शोध किए जा रहे हैं । अनिष्ट शक्ति, घरों में हुए परिवर्तन और दैवीकणों से संबंधित सैकडों संदर्भ सनातन ने दृश्य-श्रव्य चक्रिकाओं में उपलब्ध करवा दिए हैं । अब सनातन के इस शोधकार्य में महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय से भी सहायता मिल रही है । यह शोध अब महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय के जालस्थल (वेबसाइट) पर प्रकाशित किए गए हैं ।

किसी आध्यात्मिक संस्था का इस प्रकार धार्मिक अथवा आध्यात्मिक घटनाओं का वैज्ञानिक उपकरणों से शोध करना, अद्भुत है । सनातन संस्था, आगामी अनेक पीढियों के लिए यह अनमोल धरोहर संभालकर रख रही है । इसके लिए समाज सनातन का सदैव ऋणी रहेगा ।

आध्यात्मिक संग्रहालय के लिए आध्यात्मिक वस्तुओं का संरक्षण

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नांदेड स्थित श्री रेणुकादेवी के मंदिर का प्रभावलय यू टी एस उपकरण से मापते साधक

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में आध्यात्मिक संग्रहालय बनाया जा रहा है । इस संग्रहालय के लिए अब तक भारत के अनेक तीर्थक्षेत्रों, देवालयों, संतों के मठ, संतों के समाधिस्थल, ऐतिहासिक स्थान आदि से अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण वस्तुएं, मिट्टी, पानी आदि तथा पंचमहाभूतों का प्रभाव दर्शानेवाली सहस्रों वस्तुएं, छायाचित्र और १६ सहस्र से अधिक दृश्यश्रव्य-चक्रिकाओं का संरक्षण किया जा चुका है । ऐसी अनेक प्रकार की आध्यात्मिक वस्तुएं संरक्षित कर, सनातन संस्था ने अध्यात्मजगत के इतिहास में एक नया ही अध्याय लिखा है ।

१. अनिष्ट शक्तियों की पीडा पर अनेक उपचार-पद्धतियों की खोज

मनुष्य की अधिकतर समस्याओं का मूल कारण अनिष्ट शक्तियों की पीडा, होती है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने अनिष्ट शक्तियों के विषय में न भूतो न भविष्यति ऐसा शोध किया है । इसमें आध्यात्मिक कारणों से होनेवाली पीडा के लिए पृथ्वी पर अनुपलब्ध आध्यात्मिक उपचार बताए गए हैं । (आध्यात्मिक उपायों की विस्तार से जानकारी, सनातन-निर्मित आध्यात्मिक कष्ट निवारण के उपचार नामक ग्रंथमाला में दी है ।)

२. विविध चिकित्सापद्धतियों से आध्यात्मिक स्तर पर शोध

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परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने विविध प्रकार के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पीडा का निवारण करने के लिए गत्ते के रिक्त बक्सों के उपचार, स्पर्शरहित बिन्दुदाबन तथा प्राणशक्ति (चेतनाशक्ति) प्रणाली में अवरोध से उत्पन्न रोगों का उपचार आदि अनेक नई-नई आध्यात्मिक उपचार-पद्धतियों का शोध किया ।

३. स्वयंके (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके) और अन्योंमें हुए परिवर्तन सम्बन्धी शोध

३ अ. नख, केश और त्वचा में आध्यात्मिक
कारणोंसे होनेवाले परिवर्तनोंसे सम्बन्धित शोध

साधनासे आध्यात्मिक स्तर बढनेपर नख और केश में होनेवाले परिवर्तनोंका अध्ययन करनेके लिए परात्पर गुरु डॉक्टरजीने वर्ष २००२ से अपने कटे हुए नख और केश दिनांकानुसार संग्रहित किए हैं । उच्च आध्यात्मिक स्तरके साधक, सन्त, अनिष्ट शक्तियोंके कष्टसे पीडित साधक आदि के नख और केश भी दिनांकानुसार तुलनात्मक अध्ययन हेतु संग्रहित किए हैं । त्वचामें होनेवाले परिवर्तनका अध्ययन करनेके लिए भी परात्पर गुरु डॉक्टरजीने वर्ष २०१० से अपनी तथा उच्च आध्यात्मिक स्तरके साधक, सन्त और अनिष्ट शक्तियोंकी पीडासे ग्रस्त साधकोंके शरीरके विविध भागोंकी त्वचाके छायाचित्र भी संग्रहित किए हैं ।

अधिक विवेचन हेतु पढें – आगामी ग्रन्थमाला परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीमें हुए परिवर्तनोंका अध्यात्मशास्त्र

३ आ. स्वयं (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) और
साधकोंकी वस्तुओं में अपनेआप होनेवाले परिवर्तनोंसम्बन्धी शोध

परात्पर गुरु डॉक्टरजीके चैतन्यके कारण उनके द्वारा उपयोग की जानेवाली वस्तुओंमें दैवी परिवर्तन हुए हैं । उदा. उनकी बालटीकी तलीमें विशिष्ट चक्राकार कलाकृति बनी है । ईश्‍वरके प्रति भाव होनेके कारण कुछ साधकोंकी वस्तुओं में भी परिवर्तन हुआ है, उदा. श्री दुर्गादेवीके चित्रपर नीली छटा उभरी है, अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणोंसे कुछ वस्तुएं खराब भी हुई हैं, उदा. देवताओं के चित्र और कपडे जल गए हैं, कुछ वस्तुएं टूट गई हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें इन सभी परिवर्तनोंपर शोध करनेकी दृष्टिसे अध्ययन चल रहा है ।

३् इ. स्वयंके (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके) महामृत्युयोगका शोधपरक अध्ययन

ज्योतिषशास्त्रानुसार वर्ष १९८९ से आजतक परात्पर गुरु डॉक्टरजीके जीवनमें अनेक बार महामृत्युयोग आए हैं । वर्ष २००९ में परात्पर गुरु डॉक्टरजीके रक्तमें सीसा धातुकी मात्रा बढ गई । जिससे उन्हें हुई प्राणघातक विषबाधा (Lead Poisioning) गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (जनपद नगर, महाराष्ट्र) द्वारा बताए गए आध्यात्मिक उपचारों तथा उनके द्वारा किए अनुष्ठानके कारण बिना किसी औषधिके ठीक हो गई थी ।

ज्योतिषशास्त्रानुसार परात्पर गुरु डॉक्टरजीके जीवनमें ऐसे महामृत्युयोग भविष्यमें भी आएंगे । हिन्दू राष्ट्रकी (सनातन धर्म राज्यकी) स्थापनाके लिए परात्पर गुरु डॉक्टरजीका देहधारी अस्तित्व आवश्यक है । इसलिए उनका महामृत्युयोग टालनेके लिए योगतज्ञ दादाजी वैशंपायनजी (कल्याण, जनपद ठाणे) जैसे सन्त, महर्षि (तिरुवण्णामलई, तमिलनाडुके सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका वाचक पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जीके माध्यमसे) और भृगु ऋषि (होशियारपुर, पंजाबके भृगुसंहिता-वाचक डॉ. विशाल शर्माजीके माध्यमसे) स्वयं ही आध्यात्मिक सहायता कर रहे हैं । इस महामृत्युयोगके कालमें परात्पर गुरु डॉक्टरजी आधुनिक चिकित्साशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र और अध्यात्मशास्त्रकी दृष्टिसे अपने स्वास्थ्यका तुलनात्मक शोधपरक अध्ययन कर रहे हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने इस महामृत्युयोग की अवधि में अपने स्वास्थ्य का आधुनिक चिकित्साशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र और अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन कर, अध्यात्मशास्त्र की श्रेष्ठता दिखा दी ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कुंडलिनीचक्रों के स्पंदनों का परीक्षण लेकर एंटीना द्वारा करते हुए श्री. मयांक बडजात्या (१३.६.२०१३)

सनातन ने समय-समय पर छायाचित्र निकालकर और लेख लिखकर अनेक संतों की देह, त्वचा, केश, नख और वस्तुओं में होनेवाले दैवी परिवर्तनों के विषय में शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अध्ययन किया है । इस शोध से आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत व्यक्तियों के विषय में होनेवाले दैवी परिवर्तनों का शास्त्र ज्ञात हुआ ।

४. अनेक आश्रमों में अपनेआप होनेवाले परिवर्तनों पर शोध

omपरात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का निवासस्थान, रामनाथी, गोवा में स्थित सनातन आश्रम है । इस आश्रम में होनेवाले दैवी परिवर्तन (उदा. फर्श पर अपनेआप ॐ अंकित होना) तथा अनिष्ट शक्तियोंकी मुखाकृति बनने की घटना का वैज्ञानिक पद्धति से शोध किया जा रहा है । संतों के निवासस्थान में होनेवाले परिवर्तनों का शास्त्र समाज को ज्ञात हो, यह इस शोध के पीछे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का उद्देश्य है । सनातन के अन्य आश्रमों में भी इस प्रकार के दैवी परिवर्तन हो रहे हैं ।

५. कला के सात्त्विक प्रस्तुतीकरण के विषय में शोध

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में विविध कलाओं में प्रवीण साधक-कलाकार अपनी कलाओं को सात्त्विक प्रस्तुतीकरण संबंधी शोध कर रहे हैं ।

५ अ. चित्रकला और मूर्तिकला

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधक-कलाकारों द्वारा निर्मित विष्णु, लक्ष्मी, श्रीराम, हनुमान, श्रीकृष्ण, भगवान शिव, दुर्गादेवी, गणपति और भगवान दत्तात्रेय इन नौ देवताओं के चित्र, विविध देवताओं के तत्त्व से युक्त रंगोलियां; श्री गणेश की मूर्ति तथा अन्य मूर्तियों में विशिष्ट देवता के तत्त्व; शक्ति, भाव, चैतन्य, आनंद और शांति अधिकाधिक आए, इसके लिए निर्माण के प्रत्येक चरण में मार्गदर्शन किया । आगामी १ – २ वर्ष में उनके मार्गदर्शन से मूर्तिकार-साधक श्री दुर्गादेवी के मारक तत्त्व से युक्त मूर्ति बनानेवाले हैं । (इस विषय की विस्तृत जानकारी सनातन के लघुग्रंथ देवताओं के तत्त्व आकृष्ट और प्रक्षेपित करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां और श्री गणेशमूर्ति शास्त्रानुसार हो ! में दी है ।)

५ आ. सात्त्विक अक्षर, अंक तथा सात्त्विक मेंहदी

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में सात्त्विक अक्षरों एवं अंकों की रचना की गई है तथा मेंहदी की सात्त्विक कलाकृतियां बनाई गई हैं ।
[इस विषय की जानकारी सनातन के ग्रंथ, सात्त्विक देवनागरी लिपि के अक्षर और अंक लिखने की पद्धति तथा सात्त्विक मेंहदी (२ भाग) में दी है ।]

५ इ. संगीत

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने विविध देवताओं के नामजपों को विशिष्ट देवता के तत्त्व और भाव तथा क्षात्रगीतों में क्षात्रतेज जागृत करनेवाली लय सनातन के साधकों को सुझाई हैं ।
[इस विषय की विस्तृत जानकारी देवताओं के नामजप और उपासनाशास्त्र (३ भाग) और क्षात्रगीत नामक श्रव्यचक्रिकाओं (ऑडियो सीडी) में दी है ।]

५ ई. नृत्यकला

उन्होंने साधकों से नृत्य की विविध शारीरिक स्थितियों और मुद्राओं का आध्यात्मिक दृष्टि से अभ्यास करवाया ।

६. पंचमहाभूतों के कारण घटित बुद्धि-अगम्य घटनाओं का
अध्ययन तथा वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से शोध

om_prayog-2पृथ्वी, आप (जल), तेज (अग्नि), वायु और आकाश इन पांच महाभूतों से घटनेवाली बुद्धिअगम्य घटनाएं, उदा. साधकों की वस्तुओं से दैवी सुगंध आना, कांसे की कटोरी में अपनेआप सुगंधी (इत्र) बनना, दैवी कण दिखाई देना (टिप्पणी), देवताओं और अन्य चित्रों में रंगपरिवर्तन, विशेष नाद सुनाई देना, घर की पटिया पारदर्शक होना आदि विषयों का वैज्ञानिक पद्धति से शोध हो, इसके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रयत्न जारी हैं । (टिप्पणी : दैवी कण – सात्त्विक व्यक्ति, स्थान आदि पर सुनहरे, रुपहले आदि अनेक रंगों के इन कणों का भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटरमें परीक्षण किया गया । आइ.आइ.टी. मुंबई में हुए परीक्षण के अनुसार इन कणों में कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सिजन तत्त्व पाए गए । इनमें स्थित मूलद्रव्यों की मात्रा के आधार पर बनाया गया उनका फॉर्मूला, अभी तक ज्ञात किसी भी फार्मूले से मेल नहीं खाता । इससे पता चलता है कि ये कण नवीनतम ही हैं । साधक इन कणों को दैवी कण कहते हैं ।)

६ अ. वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से जारी शोधकार्य

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में हिन्दू आचार, आहार, वेशभूषा, केशरचना, धार्मिक कृत्य, यज्ञ, नामजप, मुद्रा, न्यास, श्रीयंत्र आदि का व्यक्ति, वस्तु, वास्तु और वातावरण पर होनेवाले प्रभाव के विषय में विविध वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से शोध हो किया जा रहा है । इन उपकरणों में, इलेक्ट्रोसोमैटोग्राफिक स्कैनिंग, रेजोनेन्ट फिल्ड इमेजिंग, इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक फिल्ड, लेकर एंटेना, किर्लियन फोटोग्राफी, यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर, थर्मल इमेजिंग, पिप आदि हैं ।

७. सात्त्विकता की दृष्टि से प्राणियों व वनस्पतियों का अध्ययन

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में तितली, मुर्गा, तोता, गाय, घोडा आदि की आध्यात्मिक विशेषताओं पर वैज्ञानिक उपकरणों से शोध किया गया है । इसी प्रकार, तुलसी, कुरुक्षेत्र का अक्षयवट, शुकताल का वटवृक्ष, भालकातीर्थ का पीपल आदि वृक्षों का सात्त्विकता की दृष्टि से अध्ययन किया गया है ।

८. ज्योतिषशास्त्र और नाडिज्योतिष से शोधकार्य

८ अ. ज्योतिषशास्त्र से शोध

दैवी बालकों, सनातन के संतों तथा आध्यात्मिक पीडा से ग्रस्त व्यक्तियों की जन्मपत्रियों का अध्ययन कर, उनके जीवन के विशेष योगों का अध्ययन करना, ज्योतिषशास्त्र से देश में होनेवाली आध्यात्मिक घटनाओं के कारणों का पता लगाना इ. शोधकार्य हो रहे हैं ।

८ आ. हस्तसामुद्रिक (हस्तरेखा-संबंधी) और
पादसामुद्रिक (पदरेखा-संबंधी) शास्त्र की सहायता से शोध

मनुष्य के भिन्न-भिन्न शारीरिक लक्षण देखकर उसके स्वभाव, गुण-दोष, भूतकाल और भविष्यकाल को बतानेवाली ज्योतिष विद्या भारत में प्राचीन काल से ही प्रचलित है । हस्तसामुद्रिक विज्ञान में हथेलियों पर स्थित तथा पादसामुद्रिक विज्ञान में तलवों की रेखाओं, पर्वतों (ऊंचे स्थानों) तथा अन्य चिन्हों का अध्ययन किया जाता है । इन शास्त्रों की सहायता से भी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में आध्यात्मिक शोध हो रहा है ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके सर्वांगीण कार्यका संक्षिप्त परिचय’

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