स्वभावदोष के लिए स्वसूचना की उपचारपद्धति निश्चित करना और स्वसूचना बनाना

प्रक्रिया के अंंतर्गत प्रत्येक स्वभावदोष के लिए स्वसूचना की उपचारपद्धति निश्चित करना और स्वसूचना बनाना

स्वसूचना से क्या तात्पर्य है ?

‘स्वसूचना’ अर्थात स्वयं से हुई अयोग्य कृति, मन में आए अयोग्य विचार एवं (व्यक्त अथवा अव्यक्त) प्रतिक्रिया के संदर्भ में स्वयं ही अपने अंतर्मन को (चित्त को) सूचना देना ।

स्वसूचनाओं के प्रकार

१. अपने स्वभावदोषों के उपचार हेतु स्वसूचनाओं के प्रकार

२. परिस्थिति के कारण, उदा. अन्यों के स्वभावदोष, अन्यों की बुरी स्थिति इत्यादिके कारण निर्माण होनेवाला तनाव दूर करने की पद्धति

१. अपने स्वभावदोषों के उपचार हेतु स्वसूचनाओं के प्रकार

प्रत्येक अयोग्य विचार, भावना अथवा अयोग्य कृति (आचरण के स्तंभ अंतर्गत) स्वभावदोषों के कारण होती है । स्वभावदोष दूर करने के लिए प्रत्येक अनुचित आचरण के संदर्भ में स्वयं ही अपने अंतर्मन को सूचना देना आवश्यक है ।

अ १ पद्धति : अयोग्य कृत्य का भान एवं उस पर नियंत्रण प्राप्त करने हेतु अ १ पद्धति की स्वसूचना तत्त्व

तत्त्व : इस पद्धति के अनुसार दी गई सूचना की वाक्यरचना के कारण व्यक्ति को अयोग्य विचार, भावना एवं अयोग्य कृतियों का भान होता है एवं उन पर नियंत्रण प्राप्त करना संभव होता है – ‘स्वभावदोषों के कारण जब मेरे मन में अनुचित विचार अथवा भावना आएगी अथवा मुझसे अनुचित कृति हो रही होगी, तब मुझे उसका भान होकर मैं उसे रोकूंगा ।’

अ १ पद्धति की स्वसूचना से निम्नलिखित स्वभावदोष एवं अयोग्य कृतियां दूर कर सकते हैं –

अ. १. एकाग्रता न होना, २. मनोराज्य में रमना, ३. उतावलापन, ४. हडबडी, ५. आलस्य, ६. अव्यवस्थितता, ७. समयबद्धता का अभाव, ८. अतिचिकित्सकता, ९. अन्योंका ध्यान आकर्षित करना, १०. स्वार्थीपन, ११. निर्णयक्षमता का अभाव, १२. रूढिप्रियता, १३. भ्रष्टाचारी, १४. अनैतिक आचरण, १५. अविश्वसनीय, १६. शंकालुता, १७. अभिमान, १८. घमंड, १९. अतिमहत्त्वाकांक्षी होना, २०. अतिव्यवस्थितता आदि अयोग्य विचार

आ. धूम्रपान, मदिरापान आदि व्यसन एवं

इ. नख चबाना, हकलाना, आठ वर्ष की आयु हो जाने पर भी बिस्तर गीला करना आदि अयोग्य कृत्य सम्मिलित हैं ।

उदाहरण – स्वभावदोष : भुलक्कडपन

प्रसंग : भुलक्कडपनके कारण कु. सुमन प्रतिदिन रात को सोनेसे पूर्व दूध उबालना भूल जाती थी । इस कारण दूध सुबह बिगड जाता था ।

स्वसूचना :-

चरण १ : जब मैं रात को रसोईघर की स्वच्छता कर वहां से निकलूंगी, तब मुझे इसका भान होगा कि प्रतिदिन दूध उबालना भूल जानेके कारण अगले दिन दूध बिगड जाता है और मैं तत्काल दूध उबाल दूंगी ।

चरण २ : जब मैं रात को रसोईघर की स्वच्छता पूर्ण करूंगी, तब वहां से निकलने से पहले ही मुझे स्मरण होगा कि, मुझे दूध उबालना है और मैं दूध उबालनेके उपरांत ही रसोईघर से निकलूंगी ।

इस पद्धतिका उपयोग करते समय, आगे दिए चरणों पर ध्यान दें । अपनी अयोग्य कृतिका भान किस चरणका है, वह निश्चित कर अगले चरण अनुसार अयोग्य कृतिका भान होनेके लिए स्वसूचना दें ।

चरण १ : अयोग्य कृति होनेके उपरांत स्वयं को भान हो, इस हेतु स्वसूचना देना
चरण २ : अयोग्य कृति होते हुए स्वयं को भान होकर अयोग्य कृति रोक सकें अथवा उसपर नियंत्रण प्राप्त हो अथवा योग्य कृति हो, इस हेतु स्वसूचना देना
चरण ३ : अयोग्य कृति होने से पूर्व ही स्वयं को भान होकर योग्य कृति कर पाएं, इस हेतु स्वसूचना देना
चरण ४ : योग्य कृति होनेके लिए स्वसूचना देना

आठ दिन नियमितरूप से स्वसूचना के अभ्याससत्र करने के उपरांत प्रक्रियांतर्गत प्रगति की समीक्षा करें । स्वभावदोषमें सुधार दिखाई दे, तो उससे आगेके चरण की स्वसूचना दें ।

अ २ पद्धति : १-२ मिनट से अल्प अवधि
के प्रसंगों पर अयोग्य प्रतिक्रिया पर नियंत्रण
प्राप्त करने के लिए अ २ पद्धति की स्वसूचना

तत्त्व : निरंतर कुछ माह स्वसूचना देने से अयोग्य प्रतिक्रिया की अपेक्षा योग्य प्रतिक्रिया उत्पन्न होती रहे, तो चित्त पर दोष के स्थान पर गुण का संस्कार निर्माण होकर स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन होता है । एक-दो मिनट से अल्प अवधि के प्रसंग में अयोग्य प्रतिक्रिया की अपेक्षा योग्य प्रतिक्रिया ही आए, इस हेतु इस पद्धति का उपयोग किया जाता है ।

व्यक्तित्व के आगे दिए स्वभावदोष नष्ट करने के लिए इस पद्धति का प्रयोग किया जाता है –
१. दूसरों की आलोचना करना, २. चिडचिडापन, ३. क्रोध, ४. झगडना, ५. पश्चाताप न होना, ६. हठ, ७. संदेह करना आदि ।

उदाहरण – स्वभावदोष : अनुचित अपेक्षा होना

प्रसंग : कु. जान्हवी को लेखा-विभागमें सेवा करते समय कुछ अडचन आ रही थी । वह सुलझानेके लिए उन्होंने विभागसवक से चर्चा करनेके लिए समय मांगा । विभागसेवकने उत्तर दिया कि, ‘‘अब मेरे पास समय नहीं है, सुविधाके समय हम इस विषय पर विस्तार से बात करेंगे ।’’ यह सुनकर कु. जान्हवी को बुरा लगा । उनके मनमें प्रतिक्रिया आई, ‘विभागसेवक मेरा ध्यान नहीं रखते हैं । उन्हें मेरी समस्याएं सुलझानेके लिए समय ही नहीं है ।’

अभ्यास : उपर्युक्त प्रसंग से कु. जान्हवीमें अनुचित अपेक्षा होना, भावनाशीलता एवं दूसरोंका विचार न करना, ये तीन स्वभावदोष दिखाई देते हैं । ‘अनुचित अपेक्षा करना’ स्वभावदोष दूर करनेके लिए कु. जान्हवी निम्नानुसार स्वसूचना दें ।

स्वसूचना : विभागसेवा में अपनी समस्याएं सुलझाने के लिए चर्चा हेतु विभागसेवक से समय मांगने पर जब विभागसेवक कहेंगे कि, ‘‘अभी मेरे पास समय नहीं है, आगे हम इस विषय पर विस्तार से बात करेंगे’’, तब ‘अभी उनके पास अन्य महत्त्वपूर्ण एवं तात्कालिक सेवा होगी, उसे पूर्ण करनेके उपरांत वे निश्चित ही मेरी समस्या सुलझाएंगे’, ऐसा विचार कर मैं उन्हें शांति से एवं नम्रतापूर्वक पूछूंगी कि, ‘‘चर्चा करने हेतु आपके लिए कौनसा समय उपयुक्त होगा ?’’

अ ३. पद्धति : १-२ मिनट से अधिक कालावधि
के प्रसंगों पर अयोग्य प्रतिक्रिया पर नियंत्रण प्राप्त
करने के लिए अ ३. पद्धति अर्थात प्रसंग का अभ्यास करना

तत्त्व : इस पद्धति में व्यक्ति नामजप कर कल्पना करता है कि, हम कठिन प्रसंग का सफलता से सामना कर रहे हैं । इससे मन में उस प्रसंग का सामना करने का एक प्रकार से पूर्वाभ्यास (रिहर्सल) होने के कारण प्रत्यक्ष प्रसंग का सामना करते समय व्यक्ति के मन पर तनाव नहीं आता ।

एक-दो मिनट से अधिक कालावधि के प्रसंगों में अयोग्य प्रतिक्रिया से बचने हेतु इस पद्धति का उपयोग किया जाता है, उदा. बस से यात्रा करना, परीक्षा की चिंता रहना, समारोह में जाना आदि प्रसंगों में मन पर तनाव आना ।

व्यक्तित्व में आगे दिए गए स्वभावदोष मिटाने हेतु इस पद्धति का उपयोग किया जाता है – १. दृढता न होना, २. नेतृत्व न करना, ३. चुप रहना, ४. आत्मविश्वास का अभाव, ५. पीछे हटना, ६. हीनभावना आदि । किसी प्रसंग में ‘मैं अमुक कृति नहीं कर पाता हूं अथवा कर पाऊंगा अथवा नहीं हो सकता’, ऐसा नकारात्मक संस्कार दूर करने के लिए इस पद्धति का उपयोग किया जाता है । इस पद्धति का प्रयोग कर स्वयं को किस प्रकार सूचना दें, इसका उदाहरण आगे दिया है ।

उदाहरण – स्वभावदोष : भय लगना

प्रसंग : विभागसेवकने श्रीमती कांचन से सत्संग लेनेके लिए कहा । इस पर श्रीमती कांचनके मन में प्रतिक्रिया आई कि, ‘इतने साधकोंके सामने मैं कैसे बोल पाऊंगी ।’ इसलिए उन्होंने विभागसेवकको बताया कि, ‘‘मैं सत्संग नहीं ले पाऊंगी ।’’

स्वसूचना :-

१. विभागसेवक मुझे सत्संग लेनेके लिए कह रहे हैं ।
२. सत्संगसेवक मुझे सत्संग लेने की पद्धति बता रहे हैं और मैं समझ रही हूं ।
३. सत्संग में लिए जानेवाले विषयों को मैं संक्ष्ोप में एक कागज पर लिख रही हूं । अब मैं उन विषयोंका अभ्यास कर रही हूंं ।
४. अभ्यास किए गए विषयों को ऊंचे स्वर में बोलकर मैं अन्योेंं को समझानेका पूर्वाभ्यास (रिहर्सल) कर रही हूं ।
५. सत्संग से पहले मैं शांति से सत्संगके विषय पुनः एक बार पढ रही हूं । सर्व विषयोंका मुझे क्रमवार स्मरण हो रहा है ।
६. सत्संग आरंभ करने से पूर्व मैं उपास्यदेवता से शरणागतिपूर्वक तीव्र उत्कंठा से एवं भावपूर्ण प्रार्थना कर रही हूंं ।
७. सत्संग आरंभ कर, मैं सर्व विषय शांति से एवं क्रमवार उपयुक्त उदाहरणसहित बता रही हूंं ।
८. सत्संगके अंत में मैं उपास्यदेवताके चरणों में कृतज्ञता व्यक्त कर रही हूंं ।
९. सत्संग समाप्त होने पर मुझे भान हो रहा है कि, सत्संग में पूरे समय मैं निर्भय होकर बोल सकी; इसलिए मुझे आनंद हुआ ।

अनेक बार कहीं जाने से पूर्व यह हम निश्चित करते हैं ही कि वहां जाने पर कैसे बोलें, व्यवहार करें अथवा कौनसी कृति करें । कुछ लोगोंके मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि, ‘क्या यह नियोजन प्रसंगका अभ्यास हो सकता है ।’ इसका उत्तर यह है कि, इन दोनों में अंतर है । प्रथम प्रयत्न बाह्यमनके स्तर पर हैं, तथापि दूसरा प्रयास (स्वसूचना के रूप में प्रसंगका पूर्वाभ्यास) अंतर्मन (चित्त) के स्तर पर है ।

 २. परिस्थितिके कारण, उदा. अन्योंके
स्वभावदोष, अन्यों की बुरी स्थिति इत्यादिके
कारण निर्माण होनेवाला तनाव दूर करने की पद्धति

 

 आ १ पद्धति : अन्योंके स्वभावदोष दूर कर अथवा उनकी
बुरी स्थितिके कारण हमारे मन पर आया तनाव कम करना संभव होना

बच्चे, हमारे अधीन काम करनेवाले आदि व्यक्तियोंके संदर्भ में उनके स्वभावदोषों में परिवर्तन करना संभव है । ऐसे व्यक्तियों को स्वभावदोषोंके बारे में पुनः-पुनः बताना, पुनः-पुनः दंड देना आदि कृतियां उनके स्वभावदोष दूर करनेके मार्ग हैं । इस उपचारपद्धतिका प्रयोग कर स्वसूचना बनाने हेतु एक उदाहरण आगे दिया है ।

उदाहरण – स्वभावदोष : भावनाशीलता

प्रसंग : कु. निखिल पुरोहित छठी कक्षा में पढता था । वह निरंतर मित्रों की चुगलियां कर धमाचौकडी मचाता था । एक बार खेलते समय नितीन घोष नामक एक बच्चे को उसने कसके मारा; इसलिए नितीन की मां श्रीमती घोषने निखिल की मां से निखिलके बारे में टीका-टिप्पणी की । इसलिए श्रीमती पुरोहित को बुरा लगा ।

उपचारपद्धति :

आ १. अन्योंके स्वभावदोष दूर कर अपने मनका तनाव कम करना एवं

अ २. योग्य प्रतिक्रिया

स्वसूचना : खेलते समय जब निखिल नितीन को मारेगा और इस कारण जब श्रीमती घोष मुझ से निखिल की टीका-टिप्पणी करेंगी, तब मेरे ध्यान में आएगा कि ‘निखिलका आचरण अयोग्य है तथा उसमें सुधार हो, इस हेतु श्रीमती घोष  यह बता रही हैं एवं निखिल को उसके अयोग्य आचरणके विषय में समझाना  अथवा दंड देना, इस पर मैं विचार करूंगी ।

आ २ पद्धति : अन्योंके स्वभावदोष दूर
करना अथवा बुरी स्थिति बदलना असंभव होना

कई बार अन्योंके (उदा. वरिष्ठोंके) स्वभावदोष दूर करना असंभव होता है । उसी प्रकार भीषण दरिद्रता, अतिवेदनादायक अथवा असाध्य रोग, दुर्घटना, भुखमरी आदि जैसे संकटों में अथवा तनाव निर्माण करनेवाले प्रसंगों में जब हम कुछ भी नहीं कर सकते, तब दार्शनिक की भूमिका से इन प्रश्नों की ओर देखना ही एकमात्र उपाय है । इसे साध्य करने हेतु ये उपाय करें ।

अ. दूसरों से तथा अपने प्रयत्नोंके फल की भी कोई अपेक्षा न करें ।

आ. कर्मफलन्यायके अनुसार व्यक्तिके कर्मानुरूप उसे सुख अथवा दुख मिलता है । यह बात ध्यान में रहे, तो दरिद्रता, दुर्घटना, अकाल आदि प्रसंगों में दुखी व्यक्ति को देखकर हमें दुख नहीं होता; हम तटस्थ रहकर सहायक विचार एवं कृति कर सकते हैं । उदाहरणार्थ, दुखी हुए बिना दुर्घटना में पुलिसको सूचित कर सकते हैं ।

तनाव निर्माण करनेवाले प्रसंगों की अवधिके अनुसार दार्शनिक की भूमिका निर्माण करनेवाली सूचना पद्धति ‘अ २’ अथवा ‘अ ३’ के अनुसार दी जा सकती है ।

टिप्पणी –  उपरोक्त जानकारी से यह मार्गदर्शन मिलता है कि सामान्यतः किसी विशिष्ट तनावके समय किस पद्धतिका उपयोग करना चाहिए । यहां महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अलग-अलग पद्धतियोंके प्रयोगके संदर्भ में कोई कठोर नियम नहीं है । इसीलिए विभिन्न पद्धतियोंका एकत्रित प्रयोग कर हम अपनी सूचना बना सकते हैं ।

इस उपचारपद्धतिका प्रयोग कर स्वसूचना बनाने हेतु एक उदाहरण आगे दिया है ।

 उदाहरण – स्वभावदोष : भावनाप्रधानता (अतिभावुकता)

प्रसंग : श्रीमती शाहके घर ‘मोती’ नामका कुत्ता था । श्रीमती शाह को मोती से अत्यधिक प्रेम था । अधिक आयु हो जानेके कारण मोती मर गया । तब श्रीमती शाह अपने आंसुओं को रोक न सकीं ।

उपचारपद्धति : आ २. दार्शनिक की भूमिका अपनाना एवं अ २. योग्य प्रतिक्रिया

स्वसूचना : जब मुझे पता चलेगा कि अधिक आयु हो जानेके कारण ‘मोती’ की मृत्यु हो गई है, तब मेरे ध्यान में आएगा कि ‘प्रत्येक जीवके लिए मृत्यु अटल है । ईश्वर ही हमारे जन्म-जन्मांतरके साथी हैं’ एवं मैं नामजप करनेका निश्चय करूंगी ।

विभिन्न स्वभावदोषोंके एकत्रित परिणामके कारण जब कोई अनुचित क्रिया अथवा प्रतिक्रिया होती है, तब विभिन्न पद्धतियोंका एकत्रित प्रयोग कर स्वसूचना बना सकते हैं ।

किसी से अयोग्य कृति हो और कोई उसे डांट दे और इस पर उसे क्रोध आए, तो अपने क्रोध को रोकनेके लिए वह स्वयं को ‘योग्य प्रतिक्रिया (अ २)’ इस पद्धतिके अनुसार सूचना दे सकता है – ‘अच्छा हुआ जो उसने मुझे डांटा, इससे मुझे अपनी चूकका भान हुआ ।’

केवल यह सूचना देकर न रुकें; वरन् अयोग्य कृति पुनः न होनेके लिए ‘अयोग्य कृतिका भान एवं उस पर नियंत्रण (अ १)’ इस पद्धतिका प्रयोग कर स्वसूचना देना आवश्यक है । ऐसा करने से अयोग्य कृति एवं प्रतिक्रिया की वारंवरता पर वह नियंत्रण प्राप्त कर सकता है ।

३ इ. उपचार की अन्य कुछ महत्त्वपूर्ण पद्धतियां

 

 इ १. नामजप

नामजप निरंतर होते रहने से मन में नकारात्मक विचार अथवा भावना नहीं उभरती । नामजप निरंतर होनेके लिए स्वयं को आगे दिए अनुसार सूचना दें – ‘जब मेरी किसी से बातचीत न हो रही हो अथवा मेरे मन में कुछ उपयुक्त विचार न हों, तब मेरा नामजप आरंभ होगा ।’

इ २. दंड

यदि उपचार की उपर्युक्त पद्धतियोंका दो-तीन सप्ताहतक प्रयोग करनेके उपरांत भी अयोग्य क्रिया अथवा कृति हो रही हो अथवा अयोग्य प्रतिक्रिया व्यक्त हो रही हो, तो इस पद्धतिका प्रयोग करें एवं अपने-आपको कसके चिकोटी काटूंगा । इसके लिए आगे दिए उदाहरण अनुसार सूचना दे सकते हैं – ‘जब मैं मनोराज्य में रम जाऊंगा, तब मुझे उसका भान होगा एवं मैं अपने-आपको कसके चिकोटी काटूंगा ।’

स्वभावदोष की अयोग्य अभिव्यक्ति होने पर, अपनी कलाई पर बंधे रबरबैंड को खींचकर स्वयं को वेदना पहुंचाना भी एक प्रकारका दंड हो सकता है । इससे मन में अयोग्य अभिव्यक्ति तथा वेदना में समीकरण निर्माण होता है और धीरे-धीरे मन की अयोग्य अभिव्यक्ति क्षीण हो जाती है । उपरोक्त उदाहरण में जिस विचार अथवा प्रतिक्रियाके कारण व्यक्ति वस्तुस्थिति से दूर जाता है, उसका उल्लेख स्वसूचना में करने से स्वभावदोषके शीघ्र निर्मूलन में सहायता मिलती है ।

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