अखंड सुहागका प्रतिमान- ‘करवा चौथ’ Karwa Chauth

करवा चौथ Karwa Chauth

करवा चौथ Karwa Chauth हिन्दु महिलाओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) महिला मनाती हैं। यह व्रत सवेरे सूर्योदय से पहले लगभग 4 बजे से आरंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के उपरांत संपूर्ण होता है।

व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम् ।
दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ।।

अर्थ : व्रत धारण करनेसे मनुष्य दीक्षित होता है । दीक्षासे उसे दाक्षिण्य (दक्षता, निपुनता) प्राप्त होता है । दक्षताकी प्राप्तिसे श्रद्धाका भाव जाग्रत होता है और श्रद्धासे ही सत्यस्वरूप ब्रह्मकी प्राप्ति होती है । (यजुर्वेद १९ । ३०)

करवा चौथ
करवा चौथ

भारतीय संस्कृतिका यह लक्ष है कि, जीवनका प्रत्येक क्षण व्रत, पर्व और उत्सवोंके आनंद एवं उल्हाससे परिपूर्ण हो । इनमें हमारी संस्कृतिकी विचारधाराके बीज छिपे हुए हैं । यदि भारतीय नारीके समूचे व्यक्तित्वको केवल दो शब्दोंमें मापना हो तो ये शब्द होंगे- तप एवं करुणा । हम उन महान ऋषी-मुनियोंके श्रीचरणोंमें कृतज्ञता पूर्वक नमन करते है कि, उन्होंने हमें व्रत, पर्व तथा उत्सवका महत्त्व बताकर मोक्षमार्गकी सुलभता दिखाई । हिंदु नारियोंके लिए ‘करवाचौथ’का व्रत अखंड सुहागको देनेवाला माना जाता है ।

कैसे मनाए करवा चौथ Karwa Chauth ?

विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पतिकी दीर्घ आयु एवं स्वास्थ्यकी मंगलकामना करके भगवान रजनीनाथको (चंद्रमा) अर्घ्य अर्पित कर व्रतका समापन करती हैं । स्त्रियोंमें इस दिनके प्रति इतना अधिक श्रद्धाभाव होता है कि वे कई दिन पूर्वसे ही इस व्रतकी सिद्धताका प्रारंभ करती हैं । यह व्रत कार्तिक कृष्णकी चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्थीको किया जाता है, यदि वह दो दिन चंद्रोदयव्यापिनी हो अथवा दोनों ही दिन न हो तो पूर्वविद्धा लेनी चाहिए । करकचतुर्थीको ही ‘करवाचौथ’ भी कहा जाता है ।

करवा चौथ Karwa Chauth : हिंदु संस्कृति के पवित्र बंधनका प्रतीक

वास्तवमें करवाचौथका व्रत हिंदु संस्कृतिके उस पवित्र बंधनका प्रतीक है, जो पति-पत्नीके बीच होता है । हिंदु संस्कृतिमें पतिको परमेश्वरकी संज्ञा दी गई है । करवाचौथ पति एवं पत्नी दोनोंके लिए नवप्रणय निवेदन तथा एक-दुसरेके लिए अपार प्रेम, त्याग, एवं उत्सर्गकी चेतना लेकर आता है । इस दिन स्त्रियां पूर्ण सुहागिनका रूप धारण कर, वस्त्राभूषणोंको पहनकर भगवान रजनीनाथसे अपने अखंड सुहागकी प्रार्थना करती हैं । स्त्रियां सुहागचिन्होंसे युक्त शृंगार करके ईश्वरके समक्ष दिनभरके व्रतके उपरांत यह प्रण लेती हैं कि, वे मन, वचन एवं कर्मसे पतिके प्रति पूर्ण समर्पणकी भावना रखेंगी ।

कार्तिकमासके कृष्णपक्षकी चौथको (चतुर्थी) केवल रजनीनाथकी पूजा नहीं होती; अपितु शिव-पार्वती एवं स्वामीकार्तिकेयकी भी पूजा होती है । शिव-पार्वतीकी पूजाका विधान इस हेतु किया जाता है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वतीने घोर तपस्या करके भगवान शिवको प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया वैसा ही उन्हें भी मिले । वैसे भी गौरी- पूजनका कुंआरी और विवाहित स्त्रियोंके लिए विशेष महात्म्य है ।

संदर्भ : ‘कल्याण’ गीता प्रेस गोरखपूर

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