श्राद्धविधिके लिए उपयोगमें लाई जानेवाली सामग्रीके उपयोग करनेका शास्त्र

सारिणी

१. श्राद्धविधिमें काले तिलका उपयोग करनेका शास्त्रीय आधार क्या है ?
२. श्राद्धकर्ममें गुडमिश्रित अन्न, तिल एवं मधुका दान क्यों करें ?
३. श्राद्धमें शुभ्र अक्षतका प्रयोग क्यों होता है ?
४. श्राद्धमें (माका) भृंगराज एवं तुलसीका उपयोग क्यों करें ?


 

१. श्राद्धविधिमें काले तिलका उपयोग करनेका शास्त्रीय आधार क्या है ?

‘श्राद्धमें काले तिलका उपयोग करनेका उद्देश्य है – काले तिलसे प्रक्षेपित रज-तमात्मक तरंगोंकी सहायतासे मर्त्यलोकमें अटके हुए पूर्वजोंके लिंगदेहोंका आवाहन करना । श्राद्धमें पूर्वजोंको किए गए आवाहनात्मक मंत्रोच्चारणसे उत्पन्न नादशक्तिके परिणामस्वरूप काले तिलकी सुप्त रज-तमात्मक शक्ति जागृत होती है । यह शक्ति जिस समय रज-तमात्मक स्पंदनोंके वलयांकित रूपको वातावरणमें प्रक्षेपित करती है, उस समय श्राद्धमें किए गए आवाहन अनुसार वे विशिष्ट लिंगदेह इन स्पंदनोंकी ओर आकृष्ट होते हैं एवं पृथ्वीके वातावरणकी कक्षामें प्रवेश करते हैं । इस प्रक्रियाके परिणामस्वरूप लिंगदेहोंको काले तिलसे प्रक्षेपित होनेवाली रज-तमात्मक तरंगोंपर आरूढ होकर श्राद्धविधिके स्थानपर आना सरल होता है । श्राद्धमें अर्पण किया गया नैवेद्य लिंगदेह वायुरूपमें भक्षण कर संतुष्ट होते हैं । काले तिलसे प्रक्षेपित होनेवाली तरंगोंके कारण लिंगदेहोंके चारों ओर विद्यमान वासनात्मक कोष कार्यरत होता है एवं श्राद्धका अपना अंश ग्रहण कर तृप्त होता है ।’

 

श्राद्धविधिके लिए उपयुक्त सामग्रीका शास्त्र दृश्यपट (Video)

 

२. श्राद्धकर्ममें गुडमिश्रित अन्न, तिल एवं मधुका दान क्यों करें ?

‘श्राद्धकर्ममें प्रयुक्त गुडमिश्रित अन्न, तिल एवं मधु ये घटक लिंगदेहकी वासनात्मक लेन-देनसे संबंधित कर्मके निदर्शक हैं । ये घटक लिंगदेहकी मायाकी अलग-अलग वासनाएं दानात्मक रीतिसे (दानके माध्यमसे) पूरी करती हैं ।

अ. गुड : यह सभी वस्तुओंमें तुरंत घुलमिल जानेवाला पदार्थ है, अर्थात जीवके उस विशिष्ट कार्यस्तरपर निर्माण होनेवाले समष्टि लेन-देनका प्रतीक है ।

आ. तिल : यह व्यक्तिगत स्तरपर अनजानेमें निर्मित लेन-देनका प्रतीक है ।

इ. मधु : यह प्रत्यक्ष मायाका वैयक्तिक रीतिसे; परंतु भावनापर आधारित एवं जान-बूझकर किया गया लेन-देन कम करनेका प्रतीक है ।

 

३. श्राद्धमें शुभ्र अक्षतका प्रयोग क्यों होता है ?

‘श्राद्धविधिमें लिंगदेहोंको शुभ्र (श्वेत) अक्षतकी सहायतासे हविर्भाग अर्पण किया जाता है । लिंगदेहोंको हविर्भाग (नैवेद्य) अर्पण करते समय उसपर शुभ्र अक्षत अर्पण करते हैं । नैवेद्यके खाद्यपदार्थोंमें सुप्त सूक्ष्म-वायु नैवेद्यपर अक्षत अर्पण करनेसे कार्यरत होती है एवं वह अक्षतोंकी ओर आकर्षित होकर वातावरणमें प्रक्षेपित होती है ।

 

अक्षतसे निर्मित सूक्ष्म-वायुकी तरंगोंके गंधकणोंकी ओर वातावरण-कक्षाके बाहर उपस्थित वायुरूप लिंगदेह आकर्षित होते हैं । इसके फलस्वरूप श्राद्धादि कर्ममें जीवद्वारा विशिष्ट लिंगदेहोंको अर्पित हविर्भाग विशिष्ट लिंगदेहोंको अल्पावधिमें प्राप्त होनेमें सहायता होती है । सूक्ष्म वायुरूपी अन्न लिंगदेहके चारों ओर रहनेवाले सूक्ष्म वायुकोषद्वारा शीघ्र ग्रहण किया जाता है ।’

 

४. श्राद्धमें (माका) भृंगराज एवं तुलसीका उपयोग क्यों करें ?

‘माका तेजदायी, तो तुलसी प्राणदायी है । माकाके पत्तोंसे वायुमंडल में प्रक्षेपित तेजोमय तरंगोंके कारण वायुमंडलके रज-तम कणोंकी गतिपर बंधन आता है । रज-तम कणोंकी गति मंद होनेके कारण तुलसीके पत्तोंसे प्रक्षेपित श्रीकृष्णतत्त्वकी चैतन्यमय तरंगोंसे सहजतासे रज-तम कणोंको नष्ट किया जाता है । इस प्रकारसे वायुमंडलकी शुद्धि करनेके लिए माका (भृंगराज) एवं तुलसी एक-दूसरेके पूरक सिद्ध होते हैं । वायुमंडलकी इस शुद्धताके कारण एवं श्राद्धातर्गत (श्राद्धातंर्गत) संकल्पके कारण पितरोंको श्राद्धस्थलपर प्रवेश करना सरल होता है ।’

 

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘श्राद्धकी कृतियोंका आधारभूत शास्त्र’

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