देवता की आरती कैसे करे ?

सारणी

१. देवताके प्रति भक्तिभाव जगानेका सरल मार्ग है ‘आरती’

२. प्रात: और सायंकाल, दोनों समय आरती क्यों करनी चाहिए?

३. आरतीकी संपूर्ण कृति

३ अ. देवताकी पूर्ण गोलाकार आरती ही क्यों उतारें?

३ आ. कर्पूर-आरतीके पश्चात् देवताओंके नाम का जयघोष क्यों करना चाहिए?

३ इ. विधियुक्त आरती ग्रहण करनेका अर्थ क्या है?

४. आरतीके उपरांतकी कृतियां


 

१. देवताके प्रति भक्तिभाव जगानेका सरल मार्ग है ‘आरती’

उपासकके हृदयमें भक्तिदीपको तेजोमय बनानेका और देवतासे कृपाशीर्वाद ग्रहण करनेका सुलभ शुभावसर है `आरती’ । संतोंद्वारा रचित आरतियोंको गानेसे ये उद्देश्य नि:संशय सफल होते हैं । कोई कृति हमारे अंत:करणसे तब तब होती है, जब उसका महत्त्व हमारे मनपर अंकित हो । इसी उद्देश्यसे आरतीके अंतर्गत विविध कृतियोंका आधारभूत अध्यात्मशास्त्र यहां दे रहे ।

 

२. प्रात: और सायंकाल,
दोनों समय आरती क्यों करनी चाहिए ?

`सूर्योदयके समयब्रह्मांडमें देवताओंकी तरंगोंका आगमन होता है । जीवको इनका स्वागत आरतीके माध्यमसे करना चाहिए । सूर्यास्तके समय राजसी-तामसी तरंगोंके उच्चाटन हेतु जीवको आरतीके माध्यमसे देवताओंकी आराधना करनी चाहिए । इससे जीवकी देहके आसपास सुरक्षाकवच निर्माण होता है।

 

३. आरती की संपूर्ण कृति

अ. आरतीके पूर्व तीन बार शंख बजाएं ।

१. शंख बजाना प्रारंभ करते समय गर्दन उठाकर, ऊर्ध्व दिशाकी ओर मन एकाग्र कर शंख बजाएं ।

२. शंख बजाते समय ऐसा भाव रखें कि, `ईश्वरीय तरंगोंको जागृत कर रहे हैं’ ।

३. शंखको धीमे स्वरमें आरंभ कर, स्वर बढाते जाएं और उसे वहींपर छोड दें ।

४. हो सके तो पहले श्वाससे छाती भरकर, एक ही श्वासमें शंख बजाएं ।

 

आ. शंखनाद हो जानेपर आरतीगायन आरंभ करें ।

१. इस भावसे आरती करें कि, `ईश्वर प्रत्यक्ष मेरे समक्ष हैं और मैं उन्हें पुकार रहा हूं’ ।

२. अर्थको ध्यानमें रखते हुए आरती करें ।

३. अध्यात्मशास्त्रकी दृष्टिसे शब्दका योग्य उच्चारण करें ।

 

इ. आरती गाते समय ताली बजाएं । घंटी मधुर स्वरमें बजाएं और उसका नाद
एक लयमें हो । साथमें मंजीरा, झांझ,हारमोनियमवतबलाजैसेवाद्योंकाभीतालबद्धप्रयोग करें ।

 

ई. आरती गाते हुए देवताकी आरती उतारें ।

१. आरतीकी थालीको देवताके सामने घडीकी सुइयोंकी दिशामें पूर्ण गोलाकार घुमाएं ।

२. देवताके सिरके ऊपरसे आरती उतारनेकी अपेक्षा, उनके अनाहतचक्रसे आज्ञाचक्रतक उतारें ।

 

उ. आरती उतारनेपर `कर्पूरगौरं करुणावतारं’ मंत्रका उच्चारण करते हुए कर्पूर-आरती करें ।

ऊ. कर्पूर-आरतीके उपरांत देवताओंके नामका जयघोष करें ।

ए. आरती ग्रहण करें, अर्थात् दोनों हथेलियोंको ज्योतिपर रखकर, तदुपरांत दाहिना हाथ सिरसे लेकर पीछे गर्दनतक घुमाएं ।

ऐ. आरती ग्रहण करनेके उपरांत `त्वमेव माता, पिता त्वमेव’ प्रार्थना बोलें ।

ओ. प्रार्थनाके उपरांत मंत्रपुष्पांजलि बोलें ।

औ. मंत्रपुष्पांजलिके उपरांत देवताके चरणोंमें फूल और अक्षत अर्पण करें ।

क. तदुपरांत, देवताकी परिक्रमा लगाना सुविधाजनक न हो, तो एक जगह खडे होकर, चारों ओर घूमते हुए तीन बार परिक्रमा लगाएं ।

ख. परिक्रमाके पश्चात् देवताको शरणागत भावसे नमस्कार करें और मानस-प्रार्थना करें ।

ग. तत्पश्चात् तीर्थ प्राशन कर, भ्रूमध्यपर (उदबत्ती अर्थात् अगरबत्तीकी) विभूति लगाएं ।

 

३ अ. देवताकी पूर्ण गोलाकार आरती ही क्यों उतारें?

`पंचारतीके समय आरतीकी थालीको पूर्ण गोलाकार घुमाएं । इससे ज्योतिसे प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगें गोलाकार पद्धतिसे गतिमान होती हैं । आरती गानेवाले जीवके चारों ओर इन तरंगोंका कवच निर्माण होता है । इस कवचको `तरंग कवच’ कहते हैं । जीवका ईश्वरके प्रति भाव जितना अधिक होगा, उतना ही यह कवच अधिक समयतक बना रहेगा । इससे जीवके देहकी सात्त्विकतामें वृद्धि होती है और वह ब्रह्मांडकी ईश्वरीय तरंगोंको अधिक मात्रामें ग्रहण कर सकता है ।

 

३ आ. कर्पूर-आरतीके पश्चात् देवताओंके
नाम का जयघोष क्यों करना चाहिए?

`उद्घोष’ यानी जीवकी नाभिसे निकली आर्त्त पुकार । संपूर्ण आरतीसे जो साध्य नहीं होता, वह एक आर्त्त भावसे किए जयघोषसे साध्य हो जाता है ।

 

३ इ. विधियुक्त आरती ग्रहण करनेका अर्थ क्या है?

देवताओंकी आरती उतारनेके पश्चात् दोनों हथेलियोंको दीपकी ज्योतिपर कुछ क्षण रखकर उनका स्पर्श अपने मस्तक, कान, नाक, आंखें, मुख, छाती, पेट, पेटका निचला भाग, घुटने और पैरोंपर करें । इसे `विधियुक्त आरती ग्रहण करना’ कहते हैं ।’

 

४. आरती के उपरांतकी कृतियां

अ. आरतीके उपरांत `त्वमेव माता, पिता त्वमेव’ प्रार्थना करें इससे साधकका देवता और गुरुके प्रति शरणागतिका भाव बढता है और मंत्रपुष्पांजलिके उच्चारण उपरांत देवताके चरणोंमें फूल और अक्षत चढाएं ।

 

आ. आरतीके उपरांत देवताकी परिक्रमा लगाएं । सुविधाजनक न हो, तो एक ही स्थानपर खडे होकर अपने चारों ओर परिक्रमा लगाएं । आरतीके उपरांत वातावरणकी सात्त्विकता बढती है । अपने चारों ओर परिक्रमा लगानेसे वातावरणमें फैली सत्त्वतरंगें अपने चारों ओर गोल घूमने लगती हैं ।

 

परिक्रमा लगानेके पश्चात् नमस्कार करनेसे क्या लाभ होता है ?

देवताको नमस्कार करनेसे देहकी चारों ओर बने कवचमें देवतासे प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगें दीर्घकालतक टिकी रहती हैं ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘आरती कैसे करें?’

Leave a Comment