नवरात्रिमें आधुनिक गरबा : संस्कृतिका जतन नहीं; बल्कि पतन !

१. नवरात्रोत्सवमें प्रतिवर्ष होनेवाले अनेक अनाचार अर्थात हिंदू धर्म व संस्कृतिकी अपरिमित हानिकी भयसूचक घंटी !

हिंदुओ, हमाारे सार्वजनिक उत्सवोंका विकृतिकरण हो रहा है । अधिकांश लोग उत्सव मनानेके धार्मिक, आध्यात्मिक व सामाजिक कारणको भूलकर केवल मौजमस्ती इस एक ही दृष्टिसे उत्सवोंकी ओर देखते हैं । इसका उत्तम उदाहरण है, नवरात्रोत्सवकी तैयारी देखनेके लिए समाचार-पत्रोंपर ऩजर डालते ही दिखाई देनेवाले गरबा नृत्यके ‘क्लासेस’के विज्ञापन, तथा ध्वनिप्रदूषणके संदर्भमें न्यायालयद्वारा दिए गए आदेशोंपर चल रहे विवादोंके सचित्र समाचार ! और तो और इसमें विशेषतापूर्ण बात यह होती है कि जिस देवीकी कृपा संपादन करनेके लिए यह उत्सव मनाया जाता है उस देवीमां का उल्लेख भी इनमें नहीं होता । धर्मशास्त्रमें उत्सवकी व्याख्या कुछ इस प्रकार की गई है, ‘जिस समारोहसे आनंद प्रप्त होता है, उसे ‘उत्सव’ कहा जाता है । आजके उत्सवोंको देखें, तो ‘दूसरोेंंको दुःख देकर स्वयं सुख (आनंद नहीं) के लिए कृति करनेको उत्सव कहा जाता है । इसी कारण एक विशिष्ट आयुके लोगोंको छोडकर सर्वसामान्य व्यक्ति ‘हमें शांति चाहिए उत्सव नहीं’ ऐसा कहते हुए दिखाई देती है ।

 

गणेशोत्सवके उपरांत अब नवरात्रिमें भी अनेक अनाचारोंका सामना करना पडेगा । जबरन चंदावसूली, ध्वनिप्रदूषण, फिल्मी गानोंपर आधारित गरबा नृत्य, मद्यधुंद अवस्थामें किया गया अश्लील नाच, नवरात्रोत्सवके उपरांत कुछ माहमें कुवांरी माता बननेकी मात्रामें होनेवाली वृदि्ध इत्यादि । नवरात्रोत्सवमें प्रतिवर्ष होनेवाले अनेक अनाचार अर्थात हिंदू धर्म व संस्कृतिकी अपरिमित हानिकी भयसूचक घंटी ! इस धोखेसे निद्रित हिंदुओंको सावधान करनेके लिए तथा हिंदू धर्म व संस्कृतिके रक्षणार्थ कार्यप्रवण करनेके लिए यह लेख प्रस्तुत है !

 

२. ‘गरबा’ इस शब्दका आध्यात्मिक महत्त्व व व्युत्पत्ति

गुजरातमें मातृशक्तिका प्रतीक मानकर नवरात्रोंमें अनेक छिद्रोंवाले मिट्टीके कलशमें रखा दीपक पूजा जाता है । स्त्रीकी सृजनात्मकताका प्रतीक मानकर नौ दिन पूजे जानेवाले ‘दीपगर्भ’के ‘दीप’ शब्दका लोप होकर गर्भ-गरभो-गरबो अथवा ‘गरबा’ शब्द प्रचलित हुआ ।

 

३. सांस्कृतिक अधिष्ठानवाला पारंपरिक गरबानृत्य

पहले नवरात्रिकी पहली रात्रिको देवीके निकट छोटे-बडे सचि्छद्र घट एक दूसरेपर रखे जाते थे । ऊपरवाले घटमें मिट्टीका दिया रखकर उसमें चार ज्योति जलाकर इस दीयेको अखंड जलाया जाता था व इस दीयेके चारों ओर नृत्यके फेरे लगाए जाते थे । गरबाके समय दो प्रकारके लोकनृत्य होते थे – पुरुषोंद्वारा गोलाकार खडे होकर समूहगीत गाते हुए तालियां बजाते हुए सादे पदन्यासोंसे किए नृत्यको गरबी व स्रियोंद्वारा नाजुक नाजुकतासे किए गए नृत्यको ‘गरबा’ कहते हैं । गरबाके समय अंबा, कालिका, रांदलमां आदि देवियोंके स्तुतिगीत गाए जाते थे । ऐसे समय वीर रसका निर्माण करनेवाले नगाडा, शहनाई जैसे वाद्योंका प्रायोग किया जाता था । कुछ दिनों उपरांत कृष्णलीला, संतरचित पद, ऋतुवर्णने अथवा सामाजिक विषयोंपर आधारित गीतरचनाआेंंपर नृत्य होने लगे । तालियां व चुटकियोंकी अपेक्षा खंजीर, मंजिरा, दीप इत्यादिका उपयोग नृत्यके समय किया जाने लगा ।

 

४. गरबा अर्थात देवीकी आराधना

गरबानृत्य

 

५५ वर्ष से गरबाके कार्यक्रमोंका आयोजन करनेवाले कोल्हापुर निवासी श्री. न्यास इस संदर्भमें कहते हैं, ‘देवीमाताने दुष्टोंका संहार कर हमारा रक्षण किया । हम उनका ॠण तो नहीं चुका सकते; इसीलिए उन्हें रिझानेके लिए उन्हें प्रसन्न करनेके लिए यह नृत्य किया जाता है । इस नृत्यका अर्थ है, कीर्तन, भजनके समान देवीको प्रसन्न करनेके लिए की जानेवाली आराधना । कोल्हापुरके राधाकृष्ण मंदिरके पुजारी श्री. बापू शुक्ल कहते हैं, ‘गरबा नृत्यमें उपयोगमें लाई जानेवाली डांडिया देवीके हाथके खड्गका प्रतीक है ।’ हम आपकी आराधना कर रहे हैं, यह देवीको बतानेके लिए इनका उपयोग किया जाता है । डांडिया नृत्य यह योद्धाके आविर्भावमें किया जाना चाहिए । डांडियाका उपयोग तलवारके समान करना चाहिए । यह नृत्य पेश करते समय देवीके स्तुतिगीत गाएं । आजकल खेला जानेवाला डिस्को-डांडिया डांडियाका विकृत प्रकार है ।’

 

५. गरबाके मूल उद्देश्यमें विकृति लानेवाला आधुनिक गरबा व डांडिया

विकृति लानेवाला आधुनिक गरबा
विकृति लानेवाला आधुनिक गरबा

 

१. शास्त्रविसंगत

कृष्णलीला, संतोंद्वारा रचित काव्योंपर आधरित व पारंपरिक वाद्योंंके स्वरोंमें गरबा खेला जाना आवश्यक है; परंतु आजकल फिल्मीगीतोंपर आधरित व आधुनिक वाद्योंंके कर्णकर्कश आवा़जमें गरबा खेला जाता है ।

२. अश्लील अंगविक्षेप

गरबा नृत्य करते समय शरीरका एक विशिष्ट लयमें हिलना आवश्यक है । परंतु आजकल चित्रविचित्र हावभाव कर नाचनेका शौक पूरा किया जाता है । ऐसे नृत्यमें मस्तीका प्रमाणही अधिक होनेके कारण एक-दूसरेको टकराना, जानबूझकर शरीरस्पर्श करना, ऐसे प्रकार होते हैं । डांडिया नृत्यमें अपने हाथके डांडियासे दूसरेके डांडियाको धीरेसे स्पर्श करना होता है; परंतु आज डांडिया को जोरोंसे पीटा जाता है ।

३. पावित्र्यहीनता

गरबा देवीकी आराधना है; इसलिए गरबा नृत्य करते समय पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है । किसी देवताकी पूजा करते समय जो भाव होता है, वही भाव यह नृत्य करते समय होना आवश्यक है । तथापि आज गरबेके लिए स्त्री-पुरुष तडक-भडक एवं उत्तेजक वेशभूषा कर आते हैं जिससे धार्मिक उद्देश्यकी अपेक्षा अन्य विषयोंपर ही अधिक चर्चा की जाती है । गरबा खेलनेवालोंमें मद्यपान करनेवालोंका बडे पैमानेमें समावेश होता है । नृत्य करनेवाले अधिकांश चप्पल पहनकर ही नृत्य करते हैं । इस प्रकार इस उत्सवकी पवित्रता नष्ट होती जा रही है ।

 

४. लैंगिक आकर्षण

आजकल युवक-युवतियोंमें लैंगिक आकर्षणके कारण एक-दूसरेके सान्निध्यमें आनेके माध्यमके तौरपर गरबाकी ओर देखा जााता है । इससे अनैतिकता बढ रही है । गरबा समाप्त होनेके उपरांत भी लडके-लडकियां अपने-अपने घर जानेकी अपेक्षा रास्तेपर ही भटकते हैं । अनेक पुलिस अधिकारियोंके अनुसार, गरबाके बहाने बाहर रहनेवाले ये लडके-लडकियां मद्यपान कर रातभर बाहर घूमते हैं व रास्तोंपर हंगामा करते हैं । मुंबई तथा गुजरातमें नवरात्रोत्सवके उपरांत आनेवाले कुछ माहमें कुवांरी लडकियोंके गर्भपातकी संख्यामें बडी मात्रामें वृदि्ध होती है, ऐसी जानकारी एक गुजराती समाचार-पत्रमें प्रसिद्ध हुई थी ।

५. गरबाका व्यावसायिक स्वरूप

५ अ. निधिसंकलन – एक अर्थार्जनका मार्ग

गरबाके बहाने निधिसंकलनके लिए कुछ स्थानोंपर कॉलनियोंमें फ्लैटके आकारके अनुसार, संक्षेपमें वहांके लोगोंके स्तरानुसार जबरन पैसे मांगे जाते हैं, उदा. एक वर्ष गुजरातके वापी जिलेमें एक प्रतिषि्ठत कॉलनीमें ‘थ्री-रूम किचन फ्लैट’ (3BHK) में रहनेवाले प्रत्येक व्यक्तिसे १५०० रुपए लिए व ‘टू-रूम किचन फ्लॅट’ (2BHK) में रहनेवाले प्रत्येक व्यक्तिसे १००० रुपए लिए गए । ‘डिस्को डांडिया’ (Disco Dandiya) के एक दिनकी एंट्री फीज न्यूनतम १०० रुपयोंंसे लेकर १००० रुपएतक होती है । मुंबई जैसे बडे शहरमें गरबा नृत्यके लिए बडे-बडे फिल्मी अभिनेताओंको बुलाया जाता है । इस नृत्यमें दूसरोंको सहभागी होनेके लिए अधिक रकमके टिकट रखे जाते हैं । इस माध्यमसे गरबा आयोजकोंकी कुल आमदनी २५ से ३० करोड रुपए इतनी होती है । गलत मार्गसे पैसा कमानेवाले अनेक लोग गरबाकी ओर अर्थार्जनकी दृष्टिसे ही देखते हैं ।

५ आ. लोगोंको ‘जुआरी’ बनानेवाले गरबा आयोजक

कुछ स्थानोंपर ‘गरबा’,‘ डांडिया’, ‘डिस्को डांडिया’ खेलनेके लिए हजार रुपएतकके प्रवेशपत्र लेनेवाले भाग्यवान विजेताको लॉटरीके आधरपर पांच-दस हजारकी भेंटवस्तुएं दी जाती हैं । झटपट धनवान बननेकी समाजकी मानसिकताका लाभ उठाकर गरबा आयोजक अपनी जेब भरते हैं । अनेक गरबा आयोजक गरबा व डांडिया प्रेमियोंको आकर्षित करनेके लिए महंगी मोटरगाडियोंके पुरस्कारका लालच भी दिखाते हैं । इससे अप्रत्यक्ष रूपसे समाजमें जुआ खेलनेकी मानसिकताको खाद डाला जाता है ।

६. अनाचारोंपर रोक लगानेमें राज्यकर्ताओंकी असमर्थता

विकृत गरबाकी यह बेला हिंदू धर्मके वटवृक्षको घेर रही है । नवरात्रोत्सवके दौरान होनेवाले यह अनाचार हिंदू धर्मकी रूढि परंपरा, संस्कृतिको नष्ट करनेका प्रयास कर रहे हैं । यह सब होते हुए इन अनाचारोंपर जिन्होंने निर्बंध लगाना चाहिए, वे हमारे राज्यकर्ता मात्र लोकानुनय करनेपर ही अपना सत्तास्थान अटल रहेगा, ऐसा सोचकर इन सब प्रकारोंको अनदेखा कर उलटा प्रोत्साहन देनेका काम कर रहे हैं । ध्वनिप्रदूषण, नैतिकताके लिए बनाए गए सर्व नियम इस कालावधिमें एक ओर रख दिए जाते हैं । इस कालमें अनैतिक व्यवसाय जोर पकडते हैं । यह सब बहुश्रुत होते हुए भी राज्यकर्ता इन सभी बातोंकी ओर अनदेखा करते हैं । और फिर इन सब बातोंमें न्यायप्रणालीको हस्तक्षेप करना पडता है !

 

६. आधुनिक गरबासे हमें क्या साध्य हो रहा है ?

आधुनिक गरबाका यह विदारक स्वरूप देखकर उसमें से हम क्या साध्य कर रहे हैं, यह प्रश्न निर्मित होता है ।

१. देवता-तत्त्वका लाभ नहीं होता !

गरबाका वास्तविक प्रयोजन है, हमारे द्वारा देवीकी उपासना हो तथा हमपर देवीकी कृपादृष्टि हो । परंतु आजकल उत्सवके नामपर चलनेवाले अनिष्ट प्रकारोंसे गरबाका उद्देश्य निःसंशय सफल नहीं होता ।

२. तमोगुणमें वृदि्ध

गरबोत्सवके बहाने होनेवाले श्रद्धालुओंकी लूट, गरबा नृत्यमें होनेवाले अश्लील प्रकार इत्यादिके कारण उत्सवकी पवित्रता नष्ट होनेके साथ ही तमोगुणमें बडी मात्रामें वृदि्ध हो रही है ।

३. आगामी पीढीकी हानि

हमें बच्चोंपर धर्मनिष्ठा एवं राष्ट्रनिष्ठाके संस्कार करनेका स्वर्णिम अवसर त्यौहारों व उत्सवोंके माध्यमसे प्राप्त होता है । परंतु आजके गरबोत्सवद्वारा आगामी पीढीपर ऐसे संस्कार कर ही नहीं सकते; उलटा इस माध्यमसे उनपर कुसंस्कार हो सकते हैं ।

 

७. नवरात्रोत्सव आदर्श होनेके लिए हमारे प्रयास ही धर्मपालन होगा

आजकल नवरात्रोत्सवको प्राप्त दयनीय स्वरूप आपके सामने रखनेका उद्देश्य है, हमारे धर्मकी आंखोंके सामने होनेवाली हानिका आपको एहसास हो और वह हानि रोकनेके लिए आपसे कुछ कृति हो पाए । याद रखें, आप भी इस समाजका ही एक हिस्सा हो । यदि यह हानि रोकनेके लिए आपने कुछ नहीं किया, तो इस हानिसे निर्माण होनेवाले पापमें आपका भी सहभाग हो सकता है । धर्मसंबंधी कृति करनेका अर्थ है धर्मपालन करना, तथा धर्मजागृतिके लिए प्रयास करना भी वर्तमान कालमें आवश्यक धर्मपालन ही होगा । इसलिए आज प्रत्येक व्यक्तिको अपने-अपने स्तरपर उत्सवको आदर्श स्वरूप देनेके लिए प्रयत्नरत होना होगा ।

 

८. नवरात्रोत्सव मंडलोंको आवाहन

आज शास्त्र जानकर नवरात्रोत्सव मनानेवाले मंडल, हाथकी उंगलियोंपर गिनने जितने भी नहीं बचे । उत्सवोंका मुख्य उद्देश्य जनताकी धार्मिक वृत्तिको आवाहन कर उसका पोषण करना है; परंतु आजके उत्सवका स्वरूप भोगवादी व व्यापारी वृत्तियोंको उत्तेजित करनेके कारण वे आध्यात्मिक दृष्टिसे अहितकारी हैं । इसीलिए इन मंडलोंको व उनके कार्यकर्ताओंको बतानेका मन हो रहा है कि, उत्सवोंके इस स्वरूपको आप बदल सकते हैं । उसके लिए आप आगे बताए अनुसार कृति कर सकते हैं ।
१. ऊपर उल्लेख किए अनाचार न होने दें !
२. पूजास्थलर व उत्सव मंडपमें अनुशासन और पवित्रता बनाए रखें !
३. सार्वजनिक रूपसे मनाए जानेवाले उत्सवके बहाने समाज बडे पैमानेपर एकत्रित होता है । यह ध्यानमें रखकर समाजसहायता, राष्ट्ररक्षण व धर्मजागृतिके उद्देश्योंकी पूर्तिके लिए कार्य कर सकते हैं । इसके लिए धर्म, अध्यात्म, साधना जैसे विषयोंपर व्याख्यान; ‘शराब’, ‘एड्स’ इत्यादि संबंधी जनजागृति करनेवाले व्याख्यान; जनताको भ्रष्टाचार, जातीयवादका एहसास करानेवाले प्रवचन; जनहितसे संबंधित विविध विषयोंपर तज्ञोंके चर्चासत्र आयोजित करें ।
४. जमा होनेवाले निधिका उपयोग अध्यात्मप्रसार, धार्मिक, सामाजिक व राष्ट्रीय कार्योंके लिए करें । इस निधिसे जरूरतमंद विद्यार्थियोंको शिक्षणके लिए मदद करना, अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम व अपंगोंको मदद करना, वाचनालय बनाना आदि लोकहितार्थ योजनाएं बनाएं ।

 

९. जागरूक श्रद्धालुओंको आवाहन !

जागरूक श्रद्धालुओं, गरबोत्सवके अनाचार दूर करनेमें आप निम्न प्रकारसे सहयोग कर सकते हैं ।
• निधिसंकलनके समय जबरदस्ती करनेपर पुलिसके पास शिकायत दर्ज करें व संभाव्य अनाचारोंके विषयमें पुलिसको पत्र लिखें !
• ध्वनिप्रदूषण हो रहा हो तो पुलिसको दूरभाषद्वारा शिकायत करें ! उसके लिए आपको अपना नाम बतानेकी आवश्यकता नहीं है ।
• गरबोत्सवके मंडपमें जुआ अथवा मद्यपान होते हुए देखें, तो पुलिसके पास दूरभाषद्वारा शिकायत दर्ज करें ! उसके लिए किसी भी प्रमाणकी आवश्यकता नहीं है ।
• समविचारवालोंको संगठित कर प्रशासकीय व पुलिस अधिकारीको उनके अधिकारोंका उपयोग कर अनाचारोंको रोकनेके लिए आवाहन करें !

 

१०. सनातनका ‘सार्वजनिक नवरात्रोत्सव जनजागृति अभियान’

नवरात्रोत्सवके अनाचार दूर कर वह आदर्श हों, इसके लिए सनातन संस्था पिछले ५ वर्षोंसे ‘सार्वजनिक नवरात्रोत्सव जनजागृति अभियान’ चला रही है । नवरात्रोत्सवके समय जगह-जगह प्रवचनोंद्वारा प्रबोधन किया जाता है । हस्तपत्रकों व पोस्टरोंद्वारा भी बडे पैमानेपर प्रबोधन किया जाता है । संभाव्य अनाचारोंके विरोधमें प्रशासनको निवेदन दिए जाते हैं । सनातनके अभियानमें समविचारी संगठनों व जागरूक नागरिकोंको भी सहभागी किया जाता है ।

बंधुओ, आप व्यक्तिगत रूपसे या सनातनके अभियानमें सहभागी होकर धर्मजागृतिके कार्यको मदद करें, तो जगन्माताकी सही अर्थमें कृपा संपादन कर सकते हैं । ध्यान रहे, आपके द्वारा धर्मके लिए की गई एक छोटीसी कृति भी दूसरोंके लिए प्रेरणादायी होगी ।

नवदुर्गाके उत्सवमें सात्ति्वकता बढाएं ।
गरबाके बहाने होनेवाले हैदोस टालें ।
नवरात्रि उत्सवका शास्त्र जान लें ।
शक्तिकी उपासनासे राष्ट्र एवं धर्मकी उन्नति साधें ।।

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